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________________ उपदेशमालाविशेषवृत्तिः ॥७॥ सनत्कुमारचक्रिसन्धिः मज्झ तुझ धूयाणं । पाणिं सणंकुमारो, चक्की पीडिस्सइ सयस्स ।। १०० ॥ तुह पाणिपीडणाणुग्गहेण जम्मो इमासि सहलत्तं । ता लहुउ होउ एवंति, वत्तिओ वरविवाहमहो ॥ १०१॥ वेयड्ढजिणहरेसुं, काऊणऽद्वाहियाइमहिमाओ। सासय-असासएसुं, पेक्खणपूयापयारेहिं ॥२॥ अन्नत्थवि तित्थे वित्थरेण तित्थेसराण जत्ताओ। कुवंतो सो पत्तो, एगमि सरोवरे रम्मे ॥ ३॥ अभिरामे आरामे, जावऽच्छइ पेच्छणच्छणुच्छाहो । दूरे बालवयंसो, अणब्भवुट्ठि व्व ता दिट्ठो ॥ ४॥ हरिसभरनिब्भरेणं, रन्ना हक्कारिओ समीवंमि । कयसव्वंगपणामो, अईव तुटो इमं पुट्ठो ॥ ५॥ कहमिह महिंदसीह ! आगओसि 'अइमायतायभायाणं । भण 'भण तणुकल्लाणं, सिग्यमविग्धं च धम्मस्स ॥ ६॥ आलिंगिऊण उववेसिऊण पायतियंमि पाणपिओ। कयपंचंगपसाओ, विनविउं एवमाढत्तो ॥ ७॥ कारण सामिकुसलं, अम्मापियराण न उण हियएण। तुरयाऽवहारदुव्वारदुक्खउक्खणियसोक्खाणं ॥ ८॥ दिसिसु विदिसासु सव्वत्थ, पेसिया तुह गवेसया पुरिसा । बहुभमिओ गयसेन्नो, अहमवि एगो कउव्वेगो ॥ ९ ॥ गिरिनगरागरकंतार-पारवारावगाइट्ठाणेसु । तं कत्थ कत्थ न मए, सुठु गविट्ठो न उण दिवो ॥ ११०॥ एत्तिय वरिसाणते, संपत्ते दुक्कयाण पजते । रयणनिही रोरेण व, तुम समिद्धो मए लद्धो ॥ ११ ॥ कुमरेण वि वुत्तंतो, सुमहंतो अप्पणो लहुं कहिओ। सा कढियखीरखंडक्खेवसमा तेसिमासि दसा ॥ १२ ॥ अह वेयड्ढे पत्तो, पालइ रज स सज्जियावजं । भणिओ महिंदसीहेण, देव ! अइदुक्खिया माया ॥ १३ ॥ अइसविसाओ ताओ, ता वल्लिज्जउ लहुंति तो राया । मणिमयविमाणमालाहिं चलिओ अइविसालाहि ॥ १४ ॥ गयणयले अइगुरुखयररिद्धिसंबंधबंधुरो पत्तो । हत्थिणउरंमि सव्वाण, विम्यं संजणेमाणो ॥१५।। जणणिजणयाण नागरजणाण जाओ तहा महाणंदो। ओयवियं भरहेण व, भारहखेत्तंपि छक्खंडं ॥ १६॥ नवनिहिणो चक्काई, चउदस रयणा य तस्स संजाया। बारसवारिसिओ, तह कओऽभिसेओऽखिलनिवेहि ॥ १७॥ भरहं पालइ छक्खंडमंडियं तिक्खअक्खयपयावो। सोहम्मसभाए कयाइ, वासवो सुरसमूहजुओ ॥ १८ ॥ कारइ सोयामणिनाम नाडयं अवसरंमि एयंमि । ईसाणाओ १ अयि माइ D। २ वरत: ।। ३ पाणमिओ 22ecemeroeindeioeeroeerpe ॥७ ॥
SR No.023515
Book TitleUpdeshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages574
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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