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________________ सिद्धांतरहस्य ॥५८॥ बीजवत् 'अक्रिय' छतां पण गति करी लोकांते पहोचे. अलोकने अडकीने सादी अनंत भांगे सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, गुणठाणा पारंगत, निष्ठतार्थ थाय. अशरीरी सिद्धना जीवो, पूर्व (चरम) शरीरथी त्रीजा भागे न्यून जीवप्रदेशना घनवाळा होय. साकारोपयोगे सिद्ध थाय अने ज्ञानदर्शनोपयोग सहित होय. बीजो लक्षणद्वार समाप्त. हवे त्रीजो ॥५८॥ स्थितिद्वार कहे छे:-पहेला गुणठाणनी स्थिति त्रण भांगे छेः-१ अनादि अपर्यवसित (अनंत) जे मिथ्यात्वनो आदि नथी अने अंत पण नथी, ते अभव्यजीवना मिथ्यात्वआश्रयी. २ अनादि सपर्यवसित (सांत), जे मिथ्यात्वनो आदि नथी पण अंत छे,ते जेणे ग्रंथिनो भेद करेल नथी एवा भव्य जीवना मिथ्यात्वआश्रयी.३ सादिसपर्यवसित, जे मिथ्यात्वनी आदि छे अने अंत पण छे, ते समकितने पामीने पतित थइ पुनः मिथ्यात्वने प्राप्त थयेल जीव आश्रयी. तेनी स्थिति ज० अंतर्मुहर्तनी अने उ० देशे उणा अर्द्धपुद्गल परावर्तननी छे. त्यारबाद समकित पामीने || अवश्य मोक्ष जाय. बीजा गुणठाणानी स्थिति ज. एक समयनी उ० छ आवलिकानी. त्रीजा गुण नी स्थिति ज० ने उ० अंतर्मुहर्तनी. चोथा गुण नी स्थिति ज. अंत ने उ०३३ सागरोपम झाझेरी. ते अनुत्तर विमानथी चवी मनुष्यभवमा आबीने ज्यांसुधी विरतिपणुं न पामे त्यांसुधी अधिक स्थिति जाणवी, पछी उपरले गुणठाणे अवश्य चडे. पांचमा अने तेरमा गुणनी स्थिति-ज० अंत ने उ० देशे उणा (नव वर्ष न्यून) पूर्वक्रोडनी. , अंत करो. २ सादी अनंत भागो मिथ्यात्वा होय नहिं. ३ एकबार समकीत पामी पुन: मिथ्यात्वे जाय तो पण मोहनीय कर्मनी बंध एक कोडीथी अधिक करे नहि. ४ पांचा गुणठाणानी ज. देशे उणा आठ वर्षनी.
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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