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________________ सिद्धांत रहस्य ॥५६॥ आ गुणठाणे चडेला जीवोना अध्यवसाय स्थानोनी निवृत्ति थती नथी. अर्थात् त्रणे कालआश्रयी बधा जीवन अध्यवसायो समान होय छे; तेथी अनिवृत्तिबादर कहेवाय छे. दशमा सूक्ष्मसंपरायगुणठाणाना लक्षण कहे छे: - ए गुणठाणे संज्वलननो लोभ तेना अनेक खंड करी खपाबे छे, शेष सूक्ष्म 'किट्टी ' रूप लोनो उदय होवाथी ते सूक्ष्मसंपराय कहीए. हवे अगीयारमां उपशांतमोहनीय गुणठाणाना लक्षण कहे छे:मोहनी २८ प्रकृतिओने उपशमाववाथी कषाय रहित छे, अर्थात् मत्तामां होवा छतां उदयमां न होवाथी उपशांत वीतराग कहेवाय छे ए गुणठाणाथी जीब अवश्य पडे, जो कालस्थिति पूरण थये पडे तो पश्चानुपूर्वीए पडतां - उतरता छेक प्रमत्त गुणठाणे अटके अने कोइक पांचमे के चोथे आवे; कोइक सास्वादनपणुं पामीने मिथ्यात्वे पण जाय. उपशमश्रेणिए चडेल जीव तेज भवे मोक्ष न जाय, उत्कृष्टथी अर्द्धपुद्गल कांइक न्यून संसारमां परिभ्रमण करे अने आयुष्य पूरण थये छते उपशमश्रेणिमां वर्ततो जीव कोइ एण गुणठाणे काळ करे तो अवश्य अनुत्तरविमानमां जाय. हवे बारमा क्षीणमोहनीय गुणस्थानना लक्षण कहे छेः - सर्वथा मोहनीय कर्मनो सत्तामांथी क्षय करेल छे छतां सत्तामां ज्ञानावरणीयादि कर्म होवाथी ते छद्मस्थ क्षीण मोह वीतराग कहेवाय छे. हवे तेरमा सयोगिकेवलीगुणठाणाना लक्षण कहे छे: - चार घाती कर्मने सर्वथा क्षय करी, अनंत १ उपशमश्रेणि अने क्षपक श्रेणिनुं विशेष स्वरूप 'श्रेणिस्वरूप' विचारथी जाणवुं आठमा गुणठाणाची बारमा गुणठाणानुं स्वरूप अतिशय गहन छे. तो पण बिशेष जाणवानी इच्छावाळाए पंचसंग्रहादिक ग्रंथमां जोबुं. गुणठाणा ॥५६॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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