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________________ सिद्धांतरहस्य ॥४८॥ भेदनी पूर्ववत् श्रीजा देवलोकथी आठमा देव० सुधी अने बे किल्विषिक ए आठमां आगति पूर्वोक्त वीश भेदनी ने गति चालीश भेदनी ते वीशना अपर्याप्ता ने पर्याप्तानी. नव लोकांतिक देवमां आगति, वीश भेदनी पूर्ववत्. गति त्रीश भेदनी ते पन्नर कर्म० मनुष्यना अपर्याप्ता ने पर्याप्तानी. नवमा दे०धी सर्वार्थ सिद्ध विमानना देवमां आगति, पन्नरभेदनी ते पन्नर कर्म० मनुष्यना पर्याप्तानी. गति त्रीश भेदनी पूर्ववत् पृथवी, पाणी अने वनस्प तिमां आगति, २४३ भेदनी ते १०१ समूच्छिम मनुष्यना अपर्याप्ता अने पन्नर कर्म • मनुष्यना अपर्याने पर्याप्ता. ए १३९ अने ४८ भेद तिर्यचना ऐ १७९नी लट तथा ६४ भेद देवना ते दश भवनपति पन्नर परमाधामी, सोळ व्यंतर दश जृंभका दश ज्योतिष्क बे देवलोक अने एक किल्विषिक, ए चोसठना पर्याप्ता सर्व मलीने २४३ भेदनी. गति १७९ भेदनी ते १०१ समृ० मनुष्यना अप० अने १५ कर्म० मनुष्यना अप० ने पर्याप्ता. ए १३१ ने ४८ भेद तिर्यचना. तेउ वायुमां आगति, १७९ भेदनी पूर्ववत् गति, तिर्यचना ४८ भेदनी. त्रण विकलेंद्रियमां आगति अने गति १७९ भेदनी पूर्ववत्. असंज्ञी तिर्यचमां आगति १७९ भेदनी पूर्ववत्. गति ३४५ भेदनी, ते छपन्न अंतरद्वीपना मनुष्य, दश भवनपति अने सोळ व्यंतर ए छवीश जातिना देव तथा पहेली नरक ए ८३ भेदना अपर्या० ने पर्याप्ता. एवं १६६ अने पूर्वोक्त १७९ भेद मेळवतां ३४५ भेदनी. संज्ञी तिर्यंचमां आगति २५८ भेदनी १७९ भेदने 'लट'नी संज्ञा जुनी आवृत्तिमां आपेल छे, परंतु तेवी संज्ञा शास्त्रमां जणाती नथी; व्यापार प्रसंगे 'लाट'घणी वस्तुनो जथो ए अर्थमां बोलाय है; अहिं पण 'काट' शब्द संभवे छे. गतिआगति विचार ॥४८॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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