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________________ सिद्धांतरहस्य ॥४६॥ नथी. दृष्टि एक समकितदृष्टि. दर्शन एक केवल दर्शन. ज्ञान एक केवल ज्ञान अज्ञान नथी. उपयोग वे के० ज्ञा० ने के० दर्शन. आहार नथी. उबवाय ते एक मनुष्यना दंडकमांथी उपजे. स्थिति ते सादि-अपर्यवसित छे. समोहया-असमोहया मरण नथी. चवण ते सिद्धाने चवयुं नथी. गति पण नथी. आगति एक मनुष्यनी छे. इंद्रियादि द्रव्य प्राण सिद्धने नथी. भाव प्राण चार- अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र (अव्याबाध सुख) अने अनंत वीर्य छे. इति सिद्धनो द्वार समाप्त. इति लघुदंडक समाप्त. आगति-गति विचार कहे छे: - पहेली नरके आगति, पचीश भेदनी ते पन्नर कर्मभूमिना मनुष्य, पांच मंज्ञी तिर्यच अने पांच असंज्ञी तिर्यच. ए पचीशना पर्याप्तानी. गति चालीश भेदनी ते पन्नर कर्मभू० मनुष्य अने पांच संज्ञी तिर्यंच, ए वीशना अपर्याप्ता ने पर्याप्तानी. बीजी नरके आगति, वीश भेदनी ते पचीशमांधी पांच असंज्ञी तिर्यचना पर्याप्ता वर्जवा. गति, चालीश भेदनी पूर्ववत् त्रीजी नरके आगति, उगणीश भेदनी, ते पूर्वोक्त वीरामांथी एक भुजपरिसर्पनी वर्जवी; गति, चालीश भेदनी पूर्ववत्. चोथी नरके आगति, अढार भेदनी ते पूर्वोक्त उगणीशमांथी खेचरनी वर्जवी; गति चालीश भेदनी पूर्ववत् पांचमी नरके आगति, सत्तर भेदनीते पूर्वोक्त अढारमांधी थलचरनी वर्जबी; गति चालीश भेदनी पूर्ववत्. छठ्ठी नरके आगति, सोळ भेदनी, ते पूर्वोक्त सत्तरमांधी उरपरिसर्पनी वर्जवी; गति वालीश भेदनी पूर्ववत्. सातमी नरके आगति, सोळ भेदनी १ बने उपयोग समयांतर है. दंडक ॥४६॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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