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________________ सिद्धांतरहस्य ॥३५॥ नी ज० अंत० ने उ० दशहजार वर्षनी. समोहया ने असमोहया बे मरण होय. चवण ते चवीने पृथ्वीका ०, अपका ने वनस्पतिकायिक, ते पांच स्थावर, ऋण विकलेंद्रिय, तिर्गंच पंचेंद्रिय अने मनुष्य ए दश दंडकमां जाय. तेउका० ने वायुका० ते मनुष्य वर्जिने नव दंडकमां जाय, गति-आगति ते पृथ्वीका०, अपका० ने वनस्पतिकायिक, मनुष्य ने तिर्यंच ए वे गतिमां जाय अने तेमां आवे ऋण गतिना-मनुष्य, तिर्यत्र अने देवगतिना. तेउका० ने वायुका०, ते एक तिर्यंचनी गतिमां जाय अने तेमां आवे बे गतिना-मनुष्य ने तिर्यंच गतिना. प्राण चार-इंद्रिये प्राण, कायबल, श्वासोच्छ्वास ने आयुष्य इति पांच स्थावरनो दंडक समाप्त. हवे ऋण विकलेंद्रियना ऋण दंडक कहे छे:-बे इंद्रिय, तेइंद्रिय ने चउरिंद्रियमां शरीर त्रण - औदा०, तै० ने कार्मण. अवगाहना, वे इंद्रिय, तेइंद्रिय अने चउरिंद्रियनी ज० अंगु० असं०ने उ०बार योजननी त्रण गाउनी अने चार गाउनी. संघयण एक छेवछु. संठाण एक हुंड. कषाय चार. संज्ञा चार. लेश्या व्रण पहेली -इंद्रिय, बे इंद्रिय ने बे स्पर्शनेंद्रिय अने रसनेंद्रिय. तेइंद्रिय ने त्रण, एक नासिकाइंद्रिय वधी. चउरिंद्रियने चार. एक चक्षु इंद्रिय वधी. समुद्घात, त्रण- वेदनी, कषाय ने मरणांतिक त्रणे असंज्ञी छे. वेद नपुंसक, पर्याप्ति पांच. एक मनःपर्याप्त नहि दृष्टि बे समकित ने मिथ्यात्वदृष्टि. दर्शन बे चक्षुद० ने अचक्षुदर्शन. ज्ञान बे- मतिज्ञान ने श्रुतज्ञान. अज्ञान बे-मति अ० ने श्रुत अ०, योग चार. व्यवहारवचन, औदा०, औदान्नो मिश्र ने कार्मणका योग. १ स्पर्शनेंद्रिय दंडक ॥३५॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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