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________________ सिद्धांत रहस्य दंडक ॥३२॥ ॥३१॥ ACCCCCX बीजीथी सातमी सुधी एकला संज्ञी छे. १० वेद एक नपुंसक. ११ पर्याप्ति पांच आहार पर्याप्ति, शरीरप०, इंद्रिय |प०, श्वासोच्छवास प०, अने भाषा-मनपर्याप्ति भेळी बांधे छे.१२ दृष्टि त्रण, समकित १०,मिथ्या दृ०,ने मिश्रदृष्टि, १३ दर्शन त्रण, चक्षुदर्शन, अचक्षुद०, अवधिदर्शन १४ ज्ञान व्रण, मतिज्ञान, श्रुतज्ञा०, अवधि ज्ञान, अज्ञान व्रण, मति अज्ञान, श्रुत अ०, विभंग ज्ञान. १५ योग इग्यार, चार मनना, चार वचनना अने त्रण कायाना, ते वैकेय, वै०नो मिश्र अने कार्मणकाय योग.१६ उपयोग नव-त्रण ज्ञान, त्रण अज्ञान ने त्रण दर्शन. १७ तेमज आहार-नारकने छ दिशानो होय, ते बे प्रकारनो ओज आहार ने रोम आ० ते पण अशुभ ने अचित्त होय. १८ उववाय ते आवीने उपजे ते कहे छ:-पहेली नरकमां गर्भज मनुष्य अने गर्भज तिर्यंच के ममूच्छिम ए बे दंडकमांथी उपजे. बीजीथी सातमी सुधीमां गर्भज तिर्यंच ने गर्भज मनुष्य उपजे. १९ स्थितिपहेली नरके ज० दश हजार वर्षनी अने उ० एक सागरोपमनी. बीजी नरके ज० एक सा० ने उ. व्रण सानी. त्रीजी नरके ज० त्रण सा० ने उ० सात सानी. चोथी नरके ज. सात सा० ने उ० दश सा०, पांचमी नरके ज० दश सा०, ने उ० सत्तर सा, छडी नरके ज० सत्तर सा० ने उ० बावीश सा०, सातमी नरके ज० बावीश |सा ने उ० तेंत्रीश सागरोपमनी २० समोहया ने असमोहया मरण ये छे. २१ चवण ते चवीने पहेली नरकथी १ व्याघात न होवाथी छ दिशामाथी नरकना जीवो, आहार ग्रहण करे छे. ज्यांसुधी शरीरपर्याप्ति पूरण न करी होय त्यांसुधी ओज आहार अने शारीर पर्याप्ति पूरण कर्या बाद रोम आहार होय, २ संख्याता वर्षवाला अने पर्याप्ता मनुस्य वगेरे समजवा. CHOCOLOCATEG
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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