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________________ ४ सिद्ध, तेथी स्त्री सिद्ध संख्यातगुणा, तेथी पुरुष सिद्ध संख्यात गुणा छे. एक समयमां नपुंसक उत्कृष्ट १० सिद्ध सिद्धांत- तथाय, स्त्री २० सिद्ध थाय अने पुरुष १०८ सिद्ध थाय. हवे मार्गणा कहे छ:-१ अस पणे, २ बादर पणे, ३ संज्ञि रहस्य पंचेंद्रियपणे, ४ वज्ररुषभनाराच सं० पणे, ५ शुक्लध्यान पणे, ६ मनुष्य गति पणे,७क्षायक समकितवालो, ॥२३॥ ८ यथाख्यात चारित्रवालो, ९ पंडितवीर्यवान्, १० केवलज्ञानी ११ केवलदर्शनी, १२ भव्य सिद्धिक, १३ परम शुक्ललेशी, १४ चरम शरीरी, ए चौद बोलनो धणी होय ते मोक्षे जाय. जघन्य बे हाथनी अवगाहनावाळो अने | उ० पांचसे धनुष्यनी अव० वाळो, जघन्य नव वर्षनो अने उ० पूर्व क्रोडना आयुष्यवाळो; ते पण कर्म भूमिनो होय. अने त्रीजा चोथा आरानो जन्मेलो होय ते मोक्षे जाय. इति नवतत्त्व समाप्त. अथ दंडक लिख्यते-शरीरोगाहण संघ,-यण संठाण कसाय तह सन्नाओ, लेसिदिय समुग्धाओ, सन्नीवेदेय पजत्ती,१ दिट्ठी दंसण नाणे, जोगुवओगे तहा किमाहारे; उववायठिइ समुहाए, चवण गई आगई चेव.२] मार्गणानो जे विचार करेल . ते मूल मार्गणा १४ छ:-१ गति मार्गणा, २ इन्द्रियमा० ३ कायना. ४ योग मा० ५ वेद मार्गणा० ६ कषायमा० . ज्ञान मा०८ संयममा०९ दर्शनमा० १० लेश्यामा०१७ भव्यमा० १२ समकामा० १३ संज्ञीमा०१४ आहार मार्गणा. तेनी उत्तर मार्गणा ६२ थाय छे. हवे १४ मूल मार्गणामां दशमार्गणामांथी जीव मोक्ष जाय छे. ते आ प्रमाणे:-१ नर गति, २ पंचेन्द्रिय, ३ चप्स, | ४ भव्य, ५ संजी, ६ यथाख्यात चारित्र, शायकस मकित, ८ अणाहार, ९ केवलज्ञान, १० केवल दर्शन, ए:दश मार्गणा सिवाय बाकींनी चार मूल मार्गणा वेदादि अने बावन उत्तरमार्गणामांथी जीव मोक्षे न जाय, एम नवतधप्रकरणमां कहेलुं छे.
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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