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________________ SEC नियंठा विचार ॥१८९॥ || होय अने संपूर्ण लोकमां पण होय. तेत्रीशमुं स्पर्शनाद्वार-ते क्षेत्रद्वारनी जेम जाणवू, पण आजु-बाजुना प्रदेसिद्धांत | शोने स्पर्शे माटे कांइक अधिक स्पर्शना जाणवी. चोत्रीशमुं भावद्वार-पहेला चार निर्ग्रथो. क्षयोपशम भावे रहस्य होय. निग्रंथ, उपशम अथवा क्षायक भावे होय अने स्नातक, क्षायक भावे होय. पांत्रीशमुं प्रमाणद्वार॥१८९।। प्रतिपद्यमान आश्रयी पुलाको, ज० थी एक वे अथवा त्रण अने उ० शतपृथक्त्व होय. पूर्वप्रतिपन्न आश्रयी पुलाको, ज० एक, बे के त्रण अने उ० सहस्रपृथक्त्व होय. प्रतिपद्यमान आश्रयी बकुशो अने प्रतिसे० कुशीलो ज० १-२-३ अने उ० शतपृथक्त्व होय. पूर्वप्रतिपन्न आ० कोटी शतपृथक्त्व होय. प्रतिपद्यमान आ० कषायकुशीलो, ज० १-२-३ अने उ० सहस्र पृथ होय. पूर्वप्रतिपन्न आ० कोटीसहस्र पृथ० होय. प्रतिपद्यमान-आ. निग्रथो, ज० १-२-३ अने उ० १६२ तेमां ५४ उपशम श्रेणिवाला अने १०८ क्षपकश्रणिवाला होय. पूर्वप्रतिपन्न आ० ज० १-२-३ अने उ० शतपृथ० होय. प्रतिपद्यमान आ० स्नातको, ज०१-२-३ अने उ० १०८ होय. पूर्व प्रतिपन्न आ० कोटी पृथकत्व होय. छत्रीश, अल्प बहुत्ववार-सर्वथी थोडा निग्रथो, तेथी पुलाको, संख्यातगुणा, तेथी स्नातको, संख्यातगुणा, तेथी बकुशो संख्यात गुणा, तेथी प्रतिसे• कुशीलो, संख्यात गुणा, तेथी कषाय “प्रतिपद्यमान" ते पुलाकादि भावने वर्तमानमा पामनारा. २ " पूर्वप्रतिपन्न " ते भूनकालमा ए भावने पामेला, ३ बकुश अने प्रतिसे. | कुशीलो बन्ने 'शतपृथक्त्व ' छे, त्यारे बकुशथो प्रतिसेवना संख्यातगुणा केन संभवे ? उत्तर-बकुशनु शतपृथ०, नानु अने प्रतिसे न मोढे जाणवु. बेथी नव सुधीनी संख्याने पृथक्त्वनी संज्ञा छे. ARA RESSAANSF%
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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