SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिद्धांतरहस्य ॥ १६३॥ चार कुडवे एक प्रस्थ, चार प्रस्थे एक आढक, चार आढके एक द्रोण थाय. उन्मानोपेत कोने कहीएं ? जे पुरुषने तोलतां अर्धभारनुं वजन थाय तेने उन्मानोपेत पुरुष कहीएं. अर्द्धभारनुं मान कहे छे:-चार कंपनुं एक पल्य, १०५ पल्ये एक तुला अने १० तुलाए अर्द्धभार थाय. ए प्रमाणे प्रमाण, मान अने उन्मानयुक्त होय. वली लक्षण, (रेखादि) व्यंजन (तलमसादि) अने गुण (क्षमादि) सहित होय ते उत्तम पुरुष जाणवो. उत्तम पुरुष १०८ अंगुलनो उंचो होय, मध्यम पुरुष १०४ अगुंलनो उचो होय अने कनिष्ट पुरुष ९६ अगुंलनो उंचो होय. पूर्वोक्त प्रमाणोपेत पुरुषना छ आत्मांगुले एक पाद (पगना मध्य भागनो विस्तार), वे पादे एक वेंत, वे वेंते एक हाथ, बे हाथे एक कुक्षि, बे कुक्षिए एक दंड अथवा धनुष्य, बे हजार धनुष्ये एक गाउ, चार गाउए एक योजन थाय. | जे काले जे आरे जे मनुष्यनु आत्मांगुल होय तेना वडे ते वखतना गाम, नगर, वन, कुवा, तलाव, वाव, गढ, पोळ, कोठा, यान (रथादिक) वगेरे ७३ बोलनो मान मपाय छे. हवे उत्सेंधांगुलनुं मान कहे छे:- अनंत सूक्ष्म परमाणुओनो एक व्यवहारिक परमाणु थाय छे. ते व्यवहारिक परमाणु पण शस्त्रधी छेदाय नहि, अग्निथी बळे नहि, गंगा नदीना प्रवाहमां पण नाश पामे नहि. जेना बे विभाग यह शके नहि तेने तत्त्वज्ञोए माप माटे सहुथी प्रथम ग्रहण करेल छे. तेवा अनंत परमाणुओनी एक उत्लक्षण लक्षणिका धाय, आठ उत्लक्षण श्लक्ष २ आ माप मगधदेशमां प्रचलित हतो, वैदक शास्त्रमां एक 'कर्प'ने एक रुपियाभार गणे छे अने ४ कर्षनुं पश्य, १६ पत्यनुं प्रस्थ, ४ प्रस्थनो एक आढक, ४ आढकनो एक द्रोण एम हालमां गणत्री करवामां आवेल छे. ३ निश्चय नपथी ते स्कंध कहेवाय. प्रमाणबोध विचार ॥ १६३॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy