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________________ सिद्धांतरहस्य ॥१५८।। ते सर्वने विषे सुखनुं कारण एकज जीव पदार्थ संभवे छे; कारण ? जीवना अव्याबाध आत्मिक सुखनो 'भास' त्यांपण थाय छे वस्तुतः शब्दादिमां सुख नथी अने सुख पनुं लक्षण पण नथी. माटे तीर्थंकर देवे 'सुखभास' (सुखनुं स्पष्ट थवुं) ते जीवनुं लक्षण कहेल छे. आ खाटुं छे, आ मधुर छे, हुं आ स्थितिमां छु, हुं सुखी छु, दुःखी छु आ वगेरे जे वेदन (ज्ञान) = अनुभवपणुं, ते जो कोइमां पण होय तो ते केवल आ जीव पदार्थने विषे छे. अर्थात् 'वेदकपणुं' ए जीवनुं लक्षण छे. अनंत अनंत कोटी तेजस्वी दीपक, मणि, चंद्र, सूर्यादिकनी कांति, जेना प्रकाश विना प्रगटवा समर्थ नथी. अर्थात् जे पदार्थना प्रकाशकने विषे चैतन्यपणाथी ते पदार्थों जाण्या जाय छे, ते प्रदार्थो प्रकाश पामे छे; स्पष्ट भासे छे ते जे कोइ छे ते जीव छे. माटे निराबाध प्रकाशमान चैतन्य ते जीवनुं लक्षण छे. ए पूर्वोक्त लक्षणो-विलासो जीवना छे. हवे आठ प्रकारना आत्मानुं स्वरुप कहे छे:- १ द्रव्यात्मा, ते असंख्यात प्रदेशी, जे बहिरात्मभावे परिणम्यो ते बहिरात्मा, अंतरात्म-परिणतिए परिणम्यो ते अंतरात्मा अने परगात्मभावे परिणम्यो ते परमात्मा. २ कषायात्मा, ते निश्चय अने व्यवहार नये बहिरात्माज कहीए. ३ योगात्मा, ते निश्चय नयथी बहिरात्मा अने व्यवहार नये शुद्ध योग ते अंतरात्मा, अशुद्ध योग ते बहिरात्मा. ४. उपयोगात्मामा पहेला चार ज्ञाननो उपयोग ते अंतरात्मा अने केवलज्ञाननो उपयोग ते परमात्मा. त्रण २. ज्ञान- दर्शन भने उपयोगमां शुं विशेषपणुं के ? उत्तर- ज्ञानदर्शन से लब्धि अने उपयोगरुप के उपयोग ते उपयुक्तकाले होय. जेम छद्मस्थनो उपयोग, अंतर्मुहुर्ते परावर्तन पाने छे, पण विरूपे होय छे, ज्ञान, दर्शन बने एक साथ होय छे पण बनेनो उपयोग एक काले न होय; केवलीने पण उपयोग, समयांतर होय छे. षद्रव्य विचार ॥ १५८॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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