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________________ सिद्धांत रहस्य ॥१४४॥ आवे. हवे अनेक भव आश्रयी कहे छे:- सामा० ज० २ वार अने उ० पृथक्त्व हजारवार आवे छेदोप० ज० २ वार अने उ० नवसें उपर अने १ हजारनी अंदर आवे. परिहा० ज० २ वार अने उ० ७ वार आवे. सूक्ष्म सं० ज० २ वार अने उ० ९ वार आवे यथा० ज० २ वार अने उ० ५ वार आवे आवे । उगणत्रीशमुं स्थिततिद्वार कहे छे:- एक जीवआश्रयी सामा०ने छेदोप० संयतनी स्थिति, ज० १ समयनी अने उ० देशेउणी क्रोड पूर्वनी. परिहा० संयतनी स्थिति, ज० १ समयनी अने उ० २९ वर्ष न्यून क्रोड पूर्वनी. सूक्ष्म सं० संयतनी स्थिति ज० १ समयनी अने उ० अंतर्मुहूर्तनी. यथा० संयतनी स्थिति, ज० १ समयनी अने उ० देशेउणा क्रोडपूर्वनी. हवे घणा जीव आश्रयी कहे छे:- सामा० संयतोनी स्थिति, सर्वकालनी. छेदोप संयतोनी स्थिति, ज० २५० वर्षनी अने उ० ५० लाख क्रोडसागरोपमनी. परिहा० संयतोनी स्थिति ज० देशे उणी बसो वर्षनी अने उ० देशे उणी वे क्रोड पूर्वनी. सूक्ष्म सं संयतोनी स्थिति, ज० १ समयनीं अने उ० अंतर्मुहूर्तनी. यथा० संयतोनी स्थिति, सर्वकालंनी ॥ त्रीशमुं अंतरद्वार कहे छे:-एक जीव आश्रयी पांचे संयतोनुं ( प्रत्येकनुं ) अंतर, ज० १ अंतर्मुहूर्त नुं अने उ० देशेउणा अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तकालनं. हवे घणा जीव आश्रयी कहे छे:- सामा० संयतोनुं अंतर नथी. २ घणा भव आश्रयी उप श्रेणि ४ बार आवे ते अपेक्षाये आठवार अने एकवार क्षपक श्रेणिए चढता सूक्ष्म सं० आवे माटे नववार कसुं. घणा भवआश्रयी यथाख्या० ने ऊप० श्रेणि चारवार आवे ते चढतां ४ वार यथास्था० भने क्षपक श्रेणि प्रकवार आये ते अपेक्षाए एकवार यथाख्यात आवे माटे उ० ५ वार कहेल छे. ३ देशेडणी, ते आठ वर्ष भोडी. ते ज० भने उ० स्थिति बनेमां जाणवुं [ भगवती वृद्धि ] संयत विचार ॥१४४॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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