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________________ सिद्धांतरहस्य संयत विचार ॥१४॥ ॥१४॥ अने यथाख्यात सं०, उपशांत कषायी अने क्षीणकषायी होय.॥ उगणीशमुं लेश्याद्वार कहे छे:-पहेला ४ संयतो सलेश्यी छे, यथाख्यात सं० सलेश्यी अने अलेश्यी पण छे. सामाग्ने छेदोप० संयतमा छ लेश्या होय, परिहार वि० संयतमां पाछलनी ३ लेश्या छे अने सूक्ष्म संन्ने यथा० संयतमा १ शुक्ल लेश्या छ । वीशमुं परिणामद्वार कहे छे:-सामा०, छेदोपल्ने परिहा. ए३ संयतो, चढता परिणामवाला होय, पडता परिणामवाला अने स्थिरपरिणामवाला पण होय, सूक्ष्मसंप० संयंत, चडता परिणामवालो होय, पडता परिणामवालो होय, पण |स्थिर परिणामवालो न होय. यथा० संयत, चडता परिणामवालो होय, स्थिरपरिणामवालो होय, पण पडता परिणामवालो न होय. पहेला ४ संयतोना परिणामनी वृद्धि, ज०१ सममनी अने उ. अंतर्मुहर्तनी अने यथाख्यात सं०ना परिनी वृद्धि, जल्ने उ०१ अंतर्मुहर्तनी. पहेला ४सं ना परिणामनी हीनता, ज.१ समयनीने उ०१ अंतमुं.नी. यथासं नापरिनी हीनता नथी. पहेला ३ संना परिणामनी स्थिरता,ज०१ समयनी ने उ०७ समयनी. सूक्ष्म सं० संयतनापरिनी स्थिरता, नथी. यथाख्यात संभ्ना परिनी स्थिरता, ज०१ समयनी ने उ० देशेउणा क्रोड पूर्वनी. ॥ एकवीशमुं बंधद्वार कहे छ:-पहेला ३ संयतो,७ कर्म अथवा ८ कर्म षांचे. सात बांधे तो आयप्य | सिवाय ७ बांधे. सूक्ष्म सं०संयत, मोहनीय अने आयुष्य सिवाय छ कर्म बांधे. यथा. संयत, एक सातावेदनीय १ सूक्ष्म सं0 वालो श्रेणिए चढ़ता वर्धमान परिणामवालो होय. अने श्रेणिथी पढता हीयमान परिणामबाको अवश्य होय छे; पण अवस्थित [ स्थिर .] परिणामी न होय, ROCKMANDAMAC4%
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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