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________________ 5 सिद्धांतरहस्य ॥१३८ %%% संयत विचार ॥१३८॥ %A कर्मभूमिमा जन्म अने सदभाव (छत) आश्रयी पांचे संयतो होय अने अकर्मभूमिमां एक पण न होय. संहरण आश्रयी परिहार वि० सं० वर्जीने शेष ५ संयतो होय ॥ बार, कालद्वार कहे छे:-अवसर्पिणी ने उत्सर्पिणीकालमां पांचे संयतो होय. नो अवसर्पिणी-नो उत्सर्पिणी कालमा छेदोप० ने परिहा. सं० सिवाय शेष ३ संयतो | होय.हवे अवसार्पणी कालमा जन्म आश्रयी पहेला बीजा आरामा कोइ पण संयत नहोय.त्रीजा चोथा आरामा | पांचे संयतो होय. पांचमां आरामा सामा० ने छेदो बे सं० होय. छट्टे आरे एकपण न होय, हवे सावआ श्रयी पहेला बीजा ने छट्ठा आरामां एके नहिं. त्रीजा चोथा ने पांचमा आरामां पांचे होय. संहरण आश्रयी परि | हार०सं० सिवाय शेष ४ होय. उत्सर्पिणीकालमा जन्म आश्रयी पहेले आरे एके नहिं. बीजे बीजे ने चोथे आरे पांचे होय. पांचमे ने छठे आरे एके नहिं. सद्भाव आश्रयी पहेला, बीजा आरामां एके नहिं. त्रीजा, चोथा आरामां पांचे होय,पांचमा, छठ्ठा आरामां एके नाहि.संहरण आश्रयी परिहा सिवाय शेष चार होय. नोउत्स० नो अवसर्पिणीकालमां अकर्मभूमि मध्ये एके नहिं अने पांच महाविदेहमा सामा० सूक्ष्म संम्ने यथाख्यात ए ३ संयतो होय. संहरण आश्रयी ए सर्व क्षेत्रमा परिहार० सिवाय शेष ४ संयतो होय ॥ तेर, गतिद्वार कहे छे:पांचे संयतो, नरक, तिर्यंच ने मनुष्य ए ३ गतिमां न जाय; देवगतिमां पण वैमानिक देवमां जाय. ते कहे छः सामा०, छेदोप० एबे संयत, ज० प्रथम देवलोके अने उ० अनुत्तरविमाने जाय. परिहा० संयत, ज. पहेले ४ देव० अने उ० आठमा देव० सुधी जाय. सूक्ष्म सं० जाने उ. अनुत्तरविमाने जाय. यथाख्यात सं०, जम्ने उ० 5% A5 A5% A1- 9 501
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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