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________________ सिद्धांत रहस्य ॥१३२॥ गौतम द्वीप होवाथी पृथ्वी घणी छे. ६ अष्का०, वनस्पतिका०, त्रसका०, बेइन्द्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय अने तिर्यंच पंचेंद्रिय, ए सात प्रकारना जीवो, समुच्चयजीवोनी माफक जाणवा. ७ तेडकाथिक, मनुष्य अने सिद्धना जीवो, सवधी थोडा दक्षिणने उत्तर दिशामां छे अने परस्पर तुल्य छे. कारण ? क्षेत्रो* नाना छे. तेथी पूर्व दिशामा संख्यातगुणा छे, क्षेत्रो मोटा होवाथी. तेथी पश्चिम दिशामां विशेषा० छे, त्यां अधोगाम विजय होवाथी. ८ वायुकायिक, सर्वथो थोडा पूर्व दिशामां छे, कारण ? भूमि घणी घन [ नक्कर ] छे. तेथी पश्चिम दिशामां विशेषा० छे, कारण ? त्यां अधोगामविजय होवाथी पोलाण छे. तेथी उत्तर दिशामां विशेषा० छे, कारण ? त्यां भवनो अने नरकावासो छे. तेथी दक्षिण दिशामां विशेषा० छे, त्यां उत्तर दिशा करतां विशेष भवनो अने नरकावासो छे. ९ समुच्चय नरकना जीवो सर्वथी थोडा पूर्व, पश्चिम अने उत्तर दिशामा छे, कारण? त्यां पुष्पावकीर्ण नरकावासो छे अने प्रायः ते संख्याता योजनना विस्तारवाला छे. तेथी दक्षिण दिशामां असं| ख्यात गुणा छे, कारण? त्यां कृष्णपाक्षिक* जीवो घणा उत्पन्न थाय छे. हवे प्रत्येक नरकना जीवो माटे कहे छेसातमी नरकना दक्षिण दिशाना जीवोथी छट्ठी नरकना पूर्व, पश्चिम, अने उत्तर दिशाना जीवो असंख्यात x भरत अने ऐरावत आश्रयी जाणवु, वली समश्रेणिए सिद्ध थोडा थाय के ते पण अमुक काले थाय छे अने १८ कोडाकोडी सागर सुधी सिद्ध गति पण बंध रहे छे, अर्थात् तेटला कालमां कोइ सिद्ध भरत - ऐरावतमां थता नथी. * अर्द्ध पुगल परावर्तथी वधारे काक संसार बाकी होय ते कृष्ण पाक्षिक कहेवाय अने तेथी न्युनकाल होय ते शुपाक्षिक. दिगानुपात विचार ॥१३२॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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