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________________ सिद्धांतरहस्य ॥ ११९ ॥ उ० संख्याता वर्षनो. ९ ग्रैवेयकमां हेडली त्रिके ज० १ स०नो, उ० संख्याता सेंकडो वर्षनो मध्यम त्रिके ज० १ स०नो, उ० संख्याता हजार वर्षनो. उपरली. त्रिके ज० १ स०नो, उ० संख्याता लाख वर्षनो. चार अनुत्त रमां ज० १ स०नो, उ० पल्यना असंख्यातमा भागनो. सर्वार्थमिद्धमां ज० १ स०नो, उ० पल्यना संख्यातमा भागनो. ए विरहकाल उपपात अने चवननो जाणवो. सिद्धमां ज० १ स०नो, उ०६ मासनो. ए उपपातनो विरह छे. चार गतिमां पंचेंद्रिय आश्रयी विरहज. १ स०नो, उ०१२ मुहर्तनो. सर्व इंद्रस्थानके ज० १ स०नो, उ० ६ मासनो, इति विरह विचार समाप्त. अथ चतुर्विंशति जिन अंतर [आंतरा] कहे छे - १८ कोडाकोडी सागरोपमने अंतरे पहेला श्री ऋषभदेव ( तीर्थंकर) विनितानगरीने विषे थया नाभिराजा पिता अने मारुदेवीमाताना पुत्र हेमवर्ण अने वृषभनुं लंछन छे. ५०० धनुष्यनुं देहमान अने ८४ लाख पूर्वनुं आयुष्य भोगव्यं तेमां २० लाख पूर्व कुंवरपणे रहीने ६३ लाख पूर्व राज्य पाल्युं अने १ लाख पूर्व प्रव्रज्या पाली. प्रव्रज्या लीघा पछी १ हजार वर्षे प्रभुने केवलज्ञान उपनुं. त्यारपछी साधु, साध्वी, श्रावक अने श्राविकारुप चतुर्विध संघ (तीर्थ) स्थापी अने द्वादशांगी-गणि पेटी आपी ने महीमंडलमां विचरतां त्रीजा आराना ३ वर्ष अने साडाआठ मास बाकी रह्या त्यारे महावदि तेरस ने दिने १० हजार साधुओ संघाते अष्टापद पर्वत उपरे प्रभुमोक्षे पधार्यां. पहेला श्रीआदिनाथ तीर्थंकर निर्वाण अंतरआंतरा कहे छे ॥११९॥
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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