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________________ ७ सिद्धांत रहस्य ॥११२॥ पदवी विचार ॥११२॥ अने पर्यायार्थिकनये देव मनुष्यादि पर्यायरूपे अनित्य छे; तथापि मूलस्वरूपथी आत्मा क्यारे पण पलटे नहिं. है देवादिपर्यायो कर्मना संबधी छे, माटे अनित्य छे. त्यारे पुद्गलादि जे परभाव अनित्य छे तेथी मुक्त थवानुं चिंतवq ते अनित्यानुप्रेक्षा. ३ असरणानुप्पेहा कहेतां आ जीवने संसार चक्रमा परिभ्रमण करवामां, अन्य (कोइपण ) रक्षण करवा समर्थ नथी. माता, पिता, पुत्र बंधु के स्त्री वगेरे अने मिथ्यात्वि देव, गुरु के मिथ्या धर्म पण रक्षण करवा समर्थ नथी. परंतु केवल शुद्ध समकित सहित वीतराग धर्मज. आ भव के परभवमां जीवने एक शरण छे. ४ संसाराणुप्पेहा कहेतां चार गति रूप संसारमा चोवीश दंडक चोर्यासी लाख जीवायोनिमां-अनादिकालथी जीव, राग-द्वेष ने वश थइ परिभ्रमण करे छे. संसारना मूल कारणभूत मिथ्यात्वादि पांच कारणो छे अने संसारथी मूकावनार समकित, अविरति, अप्रमाद, अकषाय अने योग निरोधनुं स्वरूप चिंतववू ते संसारानुप्रेक्षा. एम धर्मध्याननुं स्वरूप समजीने ध्याइएं-आचरणमां मूकीएं तो परमानंदरूप मोक्षy सुख पामीएं. इति धर्मध्यान विचार समास. अथ श्री पदवीविचार-७ एकेंद्रिय रत्न, ७ पंचेंद्रिय रत्न अने ९ मोटी पदवी. ए २३ पदवी. तेमां ७ एकेंद्रिय रत्नना नाम कहे छे-१ चक्ररत्न, २ छत्ररत्न, ३ चरमरत्न, ४ दंडरत्न, ५ खड्गरत्न, ६ मणिरत्न अने ७ कांगणीरत्न. हवे ७ पंचेंद्रियरत्न,ना नाम-१ सेनापतिरत्न, २ गाथापतिरत्न, ३ वार्द्धिकरत्न, ४ पुरोहितरत्न, ५ स्त्रीरत्न,६ अश्वरत्न, ने ७ गजरत्न. हवे नव मोटी पदवीना नाम-१ अरिहंतनी पदवी, २ चक्रवर्तीनी०,३ बल -
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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