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________________ सिद्धांतरहस्य ॥१०८॥ धर्मध्यान विचार ॥१०८॥ अधोलोकमां नारको तथा भुवनपतिओ छे. तिरछालोकमां वानमंतरो, मनुष्यो, तिर्यंचो, ज्योतिष्क देवो छे अने असंख्याता द्वीप समुद्रो छे. संख्याता ( ८४ लाख ) नरकावासो अने भवनपतिना (७ क्रोड ७२ लाख) भवनो छे असंख्याताव्यंतरना नगरो अने ज्योतिष्कना विमानो छे. अढीद्वीपमा तीर्थंकरो ज. २० ने उ. १७० होय, केवल ज्ञानिओ पृथक्त्व क्रोड अने साधुओ पृथक्त्व सहस्र क्रोड होय. तेमने वंदन नमन करुं तथा स्तुति गुणग्राम करूं. वळी असंख्याता श्रावक श्राविका तिरछा लोकमां छे तेना गुणग्राम करूं. तिरछालोकथी असंख्यात कोडाकोडी योजन उपरे उर्ध्व लोक छे. तेमां १२ देवलोक,९ ग्रैवेयक अने ५ अनुत्तर विमान छे. तेमां चोर्यासीलाख सताणुहजार त्रेवीश विमानो छे. सर्वार्थसिद्ध महाविमानथी १२ योजन उपर ४५ लाखयोजन प्रमाण सिद्धशिला छे, त्यां सिद्ध परमात्माओ बिराजे छे; तेमने वंदन करूं यावत् पर्युपासना करूं. अधोलोक किंचित् न्यून सात राज प्रमाण छे, अढारसो योजन प्रमाण तिरछो लोक छे अने उवलोक किंचित् अधिक सात राज प्रमाण छे ए त्रणे लोकमां सर्व स्थानके आजीव अनंतवार उत्पन्न थयो. एक वालाग्र मात्र पण भूमि स्पां विना मूकी नथी. एम समजीने श्रुत धर्म अने चारित्रधर्मनीआराधना करीए तो अजर-अमर-पद पामीए. हवे धर्मध्यानना चार लक्षणो कहे छः-१ आणारुइ कहेतां वीतरागनी आज्ञा प्रत्ये अतिशय शुभ राग भक्ति अने श्रद्धा, न उपजे ते आज्ञा रुचि. २२ निसग्गरुइ कहेतां सहज स्वभावे (जातिस्मरणादिवडे) उपदेश सिवाय श्रुन-चारित्र धर्मर्नु यथार्थ श्रद्धान थg, ते निसर्ग रुचि. ३ सुत्तरुइ कहेतां सूत्र (निग्रंथ प्रवचन)
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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