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________________ 4k सिद्धांतरहस्य ॥१०२॥ कर्मप्रकृति विचार १०॥ तेना फल ८ प्रकारे भोगवाय-१ जाति विशिष्टता, २ कुलविशिष्टता, ३ ३ बलविशिष्टता, ४ रुपविशिष्टता, ५ सपविशिष्टता, ६ श्रुतविशिष्टता, ७ लाभविशिष्टता, ८ ऐश्वर्यविशिष्टता. नीच गोत्र पण ८ प्रकारे बंधाय-१ जातिमद वगेरे आठ मद करवाथी. तेना फल ८ प्रकारे भोगवाय-१ जातिविहीनता यावत् ८ ऐश्वर्य विहीनता, गोत्रकर्मनी स्थिति ज०८ मुहर्तनी, उ०२० कोडाकोडी सागरनी. अबाधाकाल ज. अंतर्मु ने उ० २ हजार वर्षनो. अंतराय कर्म पांच प्रकरे बंधाय-१ दाननो अतराय करवाथी, २ लाभनो अंतराय करवाथी, ३ भोगनो अंतराय करवाथी, ४ उपभोगनो अंतराय करवाथी, वीर्यनो अंतराय करवाथी. तेना फल ५ प्रकारे भोगवाय१ दानांतराय, २ लाभांतराय, ३ भोगांतराय, ४ उपभोगांतराय, ५ वीर्यांतराय, अंतरायकर्मनी स्थिति ज. अंतर्मु०, ने उ० ३० कोडाकोडी सागरनी. अबाधाकाल ३ हजार वर्षनो. ज्ञानावरणीयादि ८ कर्मना बांधवाना कारणो ८५ कहेले छे अने ९३ अथवा १०८ प्रकारे भोगवे ते पूर्वे कहेल छे. बंधमां १२० प्रकृति होय-ज्ञानावरणीयनी ५, दर्शनावरणीयनी ९, वेदनीधनी २, मोहनीयनी २६, (समकितमोहनीय मिश्रमोहनीय ए २ नहिं ) आयुष्यनी ४, नामनी ६७, (ते ९३माथी वर्णादिना १६ भेद, ५ बंधन ने ५ संघातन ए २६ वर्जवा). गोत्रनी २, अंतरायनी ५. एवं एकसोवीश. उदयमा १२२, ते १२० पूर्वे कहेली ते अने समकितमो० ने मिश्रमो० ए बधी. । प्रथमनी छापेली प्रतोमा ८५ बांधवानी प्रकृति अने ९३ भोगग्यानी प्रकृति बगेरे कहेल के परंतु त्या बांधवाना कारणो ८५ हे अने तेना फल १३ प्रकारे भोगवाय छे एम जाणवं.
SR No.023509
Book TitleSiddhant Rahasya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Upadhyay
PublisherGangji Virji Shah
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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