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________________ उत्तरालङ्कारः २४७ ईर्ष्यामानानन्तरमनुतप्ताया नायिकायाः सखीमागतां प्रति 'तस्याः कुशलम् ?' इति नायकस्य प्रश्नः । 'जीवति' इति सख्या उत्तरम् । जीवत्याः कुतः कुशलमिति तदभिप्रायः । अन्यत्पृष्टमन्यदुत्तरमिति नायकस्य 'पुनः कुशलं पृच्छामि' इति प्रश्नः । पृष्टस्यैवोत्तर मुक्तमित्यभिप्रायेण जीवतीत्युक्तमिति सख्या वचनम् । सखीवचनस्याभिप्रायोद्घाटनार्थ 'पुनरपि तदेव कथयसि' इति नायकस्यात्क्षेपः । 'मृतां नु कथयामि या श्वसिति' इति सख्याः स्वाभिप्रायोद्घाटनम् । सति मरणे खलु तस्याः कुशलं भवति, मदागमनसमयेऽपि श्वासेषु सञ्चरत्सु कथं मृतां कथयेयमित्यभिप्रायः ।। १४६ ॥ अथ चित्रोत्तरम् - प्रश्नोत्तरान्तराभिन्नमुत्तरं चित्रमुच्यते । केदारपोषणरताः, के खेटाः, किं चलं वयः ॥ १५० ॥ अत्र 'केदारपोषणरता' इति प्रश्नाभिन्नमुत्तरं 'के खेटाः, किं चलम् ?' इति प्रश्नद्वयस्य 'वयः' इत्येकमुत्तरम् । उदाहरणान्तराणि विदग्धमुख मण्डने द्रष्टव्यानि ॥ ईर्ष्यामान के बाद दुःखित नायिका की सखी को आया देखकर नायक उससे प्रश्न करता है - 'वह कुशल तो है'। 'जिन्दी है' यह सखी का उत्तर है । जिन्दी रहते उसका कुशल कैसे हो सकता है, यह सखी का अभिप्राय है । मैंने पूछा कुछ और तुम कुछ और ही उत्तर दे रही हो, इस आशय से नायक पुनः प्रश्न करता है, 'मैं कुशल पूछ रहा हूँ" । मैंने प्रश्न का ही उत्तर दिया है, इस अभिप्राय से सखी कहती है 'वह जिन्दी है'। सखी के बचनों के अभिप्राय को स्पष्ट करने के लिए नायक फिर अक्षेप करता है 'फिर वही कह रही हो' । सखी अपने अभिप्राय को स्पष्ट करती कहती है- 'जो साँस ले रही है, उसे मैं मरी कैसे कह दूँ' । इसका गूढ अभिप्राय यह है कि उसका कुशल तो मरने पर ही हो सकता है, मैं जब आई तब भी उसके साँस चल रहे थे तो मैं उसे मृत ( कुशलिनी ) कैसे बता दूँ ? अब चित्रोत्तर भेद का वर्णन करते हैं: १५० - जहाँ प्रश्न तथा अन्य उत्तर से मिश्रित उत्तर दिया जाय, वहाँ उत्तर अलंकार का चित्रोत्तर नामक भेद होता है, जैसे कोई पूछता 'भार्याओं का पोषण करने में रत कौन है', उत्तर है 'वे लोग जो खेतों के पोषण में रत हैं' दो प्रश्न हैं आकाश में पर्यटन करने वाले (खेटाः) कौन हैं ? चंचल कौन हैं ?, इन दोनों प्रश्नों के एक ही श्लिष्ट चित्रोत्तर हैं: - 'वयः' | पहले प्रश्न का उत्तर है: - 'वयः' (वि' शब्द का बहुवचन, पक्षी ), दूसरे प्रश्न का उत्तर है - 'वयः' (उम्र ) । यहाँ 'केदारपोषणरताः' में 'के दारपोषणरताः ?' इस प्रश्न का उत्तर 'केदारपोषणरताः' है, इस प्रकार यहाँ उत्तर प्रश्न से अभिन्न है । 'के खेटाः किं चलम् ?' इस प्रश्नद्वय का एक ही उत्तर है 'वयः' | चित्रोत्तर के अन्य उदाहरण विदग्धमुखमण्डन नामक ग्रन्थ में देखे जा सकते हैं ।
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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