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________________ कुवलयानन्दः पदार्थवृत्तिमप्येके वदन्त्यन्यां निदर्शनाम् । त्वन्नेत्रयुगलं धत्ते लीलां नीलाम्बुजन्मनोः ॥ ५४ ॥ अत्र नेत्रयुगले नीलाम्बुजगतलीलापदार्थापो निदर्शना | यथा वा वियोगे गौडनारीणां यो गण्डतलपाण्डिमा । अदृश्यत स खजूरीमञ्जरीगर्भ रेणुषु ।। पूर्वस्मिन्नुदाहरणे उपमेये उपमानधर्मारोपः, इह तूपमाने उपमेयधर्मारोप इति भेदः। उभयत्राप्यन्यधर्मस्यान्यत्रासंभवेन तत्सदृशधर्माक्षेपादौपम्ये पर्यवसानं तुल्यम् । इयं पदार्थवृत्तिनिदर्शना ललितोपमेति जयदेवेन व्याहृता । यद्यपि 'वियोगे गौडनारीणाम्' इति श्लोकः प्राचीनैर्वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शनायामुदाहृतः, किंतु रत्नाकरकार इस रूप में भी निदर्शना मानने को तैयार न होगे, ऐसा जान पड़ता है, वे यहाँ आर्थ वाक्यार्थरूपक मानना चाहेंगे। ध्यान दीजिये, ऊपर शोभाकरभित्र ने आर्थ वाक्यार्थरूपक का जो उदाहरण दिया है ( 'स वक्तमखिलाशक्तो' इत्यादि पद्य ), वह इस पद्य से ठीक मिलता है। दोनों में समानता है । रसगंगाधरकार का मत इस अंश में शोभाकर से भिन्न है, वे बताते हैं कि जहाँ शाब्द आरोप होगा वहाँ रूपक होगा, जहाँ आर्थ अभेद होगा वहाँ निदर्शना---'एवं चारोपाध्यवसायमार्गबहिर्भूत आर्थ एवाभेदो निदर्शनाजीवितम् ।' (वही पृ० ४६३) शोभाकर आर्थ अभेद में भी निदर्शना नहीं मानते, रूपक ही मानते हैं। हम बता चुके हैं, शोभाकर केवल एक ही तरह की निदर्शना मानते हैं। . ५४-कुछ आलंकारिक पदार्थ सम्बन्धिनी (दूसरी) निदर्शना को भी मानते हैं। जैसे, हे सुंदरि, तुम्हारे दोनों नेत्र दो नील कमलों की शोभा को धारण करते हैं। __ यहाँ नेत्रयुगल पर नीलकमलगत (नीलकमलसम्बन्धी) लीला रूप पदार्थ का आरोप पाया जाता है, अतः यह निदर्शना है । अथवा जैसे___ 'अपने प्रिय के वियोग के समय गौड देश की स्त्रियों के कपोलों पर जो पीलापन होता था वह खर्जरी लता की मंजरी के पराग में दिखाई दिया।' - पहले उदाहरण से इस उदाहरण में यह भेद है कि वहाँ उपमेय (नेत्र) पर उपमान के धर्म (नीलाब्जलीला) का आरोप पाया जाता है, जब कि यहाँ उपमान (खर्जूरी. मञ्जरी) पर उपमेयधर्म (गण्डतलपाण्डिमा) का आरोप पाया जाता है। दोनों ही स्थानों पर एक वस्तु का धर्म अन्यत्र नहीं पाया जाता, उसका वहाँ होना असंभव है, अतः इस वर्णन से उसके समान तद्वस्तुधर्म का आक्षेप कर लिया जाता है, इस प्रकार यह अन्य धर्म-सम्बन्ध दोनों उदाहरणों में समान रूप से उपमा में पर्यवसित होता है। इस पदार्थवृत्ति-निदर्शना को जयदेव ने ललितोपमा माना है। (ऊपर जिस उदाहरण को दिया गया है, वह प्राचीन आलंकारिकों के मत से वाक्यार्थनिदर्शना का उदाहरण है, किन्तु अप्पय दीक्षित ने उसे पदार्थनिदर्शना के उदाहरण रूप में उपन्यस्त किया है। अतः शंका होना आवश्यक है। इसी का का समाधान करते दीक्षित कहते हैं।) . ____ यद्यपि 'वियोगे गौडनारीणाम्' इत्यादि पद्य को प्राचीन आलंकारिकों ने वाक्यार्थवृत्तिनिदर्शना का उदाहरण माना है (क्योंकि उनके मत से उपमेय में उपमानधर्मारोप होने पर पदार्थवृत्तिनिदर्शना पाई जाती है, उपमान में उपमेयधर्मारोप होने पर वे वाक्यार्थ
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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