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________________ ४८ कुवलयानन्दः गतासु तीरं तिमिघट्टनेन ससंभ्रमं पौरविलासिनीषु । यत्रोल्लसत्फेनततिच्छलेन मुक्ताट्टहासेव विभाति शिप्रा ।। इति । ततस्त्वियानत्र भेदः । एतत्तु शुद्धापनतिगर्भम् । यत्र फेनततित्वमपह्नतं तत्रैवाट्टहासत्वोत्प्रेक्षणात् , इह तु पर्यस्तापह्नतिगर्भत्वमिन्दुमण्डलादावपद्भुतस्यामृतादेः सूक्त्यादिषु निवेशनात् । इदं च पर्यस्तापह्नतिगर्भत्वमुत्प्रेक्षायामपि संभवति । तत्र स्वरूपोत्प्रेक्षायां यथा ( नै० ७।३९)जानेऽतिरागादिदमेव बिम्ब बिम्बस्य च व्यक्तमितोऽधरत्वम् । द्वयोर्विशेषावगमाक्षमाणां नाम्नि भ्रमोऽभूदनयोजनानाम् ।। अत्र प्रसिद्धबिम्बफले बिम्बतामपह्नत्यातिरागेण निमित्तेन दमयन्त्यधरे तदुत्प्रेक्षा पर्यस्तापह्नतिगी । हेतूत्प्रेक्षायां तद्गत्वं प्राग्लिखिते हेतूत्प्रेक्षोदाहरण एव दृश्यते । तत्र चान्धकारेष्वान्ध्यहेतुत्वमपहृत्यान्यत्र तन्निवेशितम् । 'जब जल क्रीडा करती पुररमणियाँ मछलियों के संघर्षण से डर कर तीर पर चली जाती हैं, तो सिप्रा नदी उफनते हुए फेन के बहाने (उनको डरा देखकर) अट्टहास करती सुशोभित होती है।' ___ इस उदाहरण से ऊपर वाले सापह्नव अतिशयोक्ति के प्रकार में यह भेद है कि 'गता. सु तीरं' इत्यादि पद्य में शुद्धापहतिगर्भा उत्प्रेक्षा पाई जाती है, क्योंकि जहाँ फेनतति के धर्म (फेनततित्व) का निषेध किया गया है, वहीं अट्टहास की उत्प्रेक्षा (सम्भावना) की गई है। जब कि 'स्वत्सूक्तिषु' तथा 'मुक्ता विद्रुममन्तरा' आदि उदाहरणों में पर्यस्तापहतिगर्भा अतिशयोक्ति पाई जाती है, क्योंकि यहाँ चन्द्रमण्डलादि में अमृतत्वादि का निषेध कर उसकी स्थिति सूक्ति आदि में बताई गई है। यह पर्यस्तापह्नति उत्प्रेक्षा में भी प्रयुक्त हो सकती है। स्वरूपोत्प्रेक्षा में पर्यस्तापह्नुतिगर्भत्व का उदाहरण निम्न है: नैषधीय चरित के सप्तम सर्ग से दमयंती के नखशिख वर्णन का पद्य है। कवि दमयंती के अधर का वर्णन कर रहा है-मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि सच्चा 'बिम्ब', बिंबाफल तो यही (दमयन्ती का अधर ही) है, क्योंकि इसमें बिंब नाम से प्रसिद्ध फल से अधिक ललाई पाई जाती है, और बिंब नामक फल इससे सचमुच निकृष्ट कोटि का (अधर) है। साधारण बुद्धि वाले लोग इस बात का तारतम्य न समझ पाये कि सच्चा बिंब यह है, और सचा बिंबाधर (बिंब से अधर, निकृष्ट) वह फल । इस भेद के न जानने के कारण ही लोगों को इनके नाम में भ्रम हो गया। (फलतः वे बिंब को बिबाधर कहने लगे और बिम्बाधर को बिम्ब।) यहाँ प्रसिद्ध बिम्बाफल में बिम्बता (धर्म) का निषेध कर अतिराग रूप संबंध के कारण दमयन्ती के अधर में बिम्बत्व की सम्भावना की गई है, अतः यह पर्यस्तापह्नति. गर्भा उत्प्रेक्षा है। हेतूत्प्रेक्षा में पर्यस्तापह्नति का गर्भव पिछले हेतूत्प्रेक्षा के उदाहरण (-गावोऽपि नेत्रापरनामधेयास्तेनेदमान्ध्यं खलु नान्धकारैः) में ही देखा जा सकता है। यहाँ अन्धकार में आन्ध्यहेतुस्वरूप धर्म का निषेध कर उसका अन्यत्र संनिवेश किया गया है। फलोत्प्रेक्षा में पर्यस्तापहतिगर्भत्व का उदाहरण निम्न है:
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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