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________________ स्मृति-भ्रान्ति संदेहालङ्काराः स्मृतिभ्रान्तिसंदेहैः सादृश्यान्निबध्यमानैः स्मृतिभ्रान्तिमान्संदेह इति स्मृत्यादिपदाङ्कितमलङ्कारत्रयं भवति । तच्च क्रमेणोदाहृतम् । यथा वा ( माघ० ८।६४ ) दिव्यानामपि कृतविस्मयां पुरस्ताद म्भस्तः स्फुरदरविन्दचारुहस्ताम् । उद्वीक्ष्य श्रियमिव काञ्चिदुत्तरन्ती. मस्मार्षीज्जलनिधिमन्थनस्य शौरिः ।। पूर्वत्र स्मृतिमदुदाहरणे सदृशस्यैव स्मृतिरत्र सदृशलक्ष्मीस्मृतिपूर्वक तत्सम्बन्धिनो जलनिधिमन्थनस्यापि स्मृतिरिति भेदः । पलाशमुकुलभ्रान्त्या शुकतुण्डे पतत्यलिः । सोऽपि जम्बूफलभ्रान्त्या तमलिं धर्तुमिच्छति ।। सादृश्य के आधार पर काव्य के प्रकृत तथा अप्रकृत पदार्थों में स्मृति, भ्रांति या संदेह के निबद्ध करने पर स्मृति, भ्रांतिमान् तथा संदेह नामक अलंकार होते हैं। भाव यह है जहाँ सादृश्य के आधार पर उपमान को देखकर उपमेय का स्मरण हो वहाँ स्मृति अलंकार होता है । जहाँ सादृश्य के आधार पर उपमेय में भ्रांति से उपमान का भान हो, वहाँ भ्रांति अलंकार होता है । जहाँ सादृश्य के आधार पर उपमेय में उपमानों की सत्ता का संदेह हो तथा यह निश्चय न हो पाये कि यह उपमेय ही है, वहाँ संदेह होता है इन्हीं के क्रमशः उदाहरण दे रहे हैं: स्मृति का उदाहरण: माघ के अष्टम सर्ग का जलक्रीडा वर्णन है। भगवान् कृष्ण ने जल से निकलती हुई लचमी के समान सुन्दर किसी ऐसी रमणी को आगे देख कर जिसका सौंदर्य देवताओं को भी आश्चर्यचकित कर देने वाला था, तथा जो चंचल कमल से सुशोभित हाथ वाली थीसमुद्रमन्थन का स्मरण किया। ____ इस पद्य में दो अलंकार हैं, एक 'श्रियमिव' इस स्थल में उपमा. दूसरा 'अस्मार्षीजलनिधिमंथनस्य' इस स्थल में स्मृति । इन दोनों अलंकारों में परस्पर अङ्गाङ्गिभाव है। यहाँ स्मृति अलंकार अङ्गी है, उपमा उसका अङ्ग । पूरे काव्य में इनदोनों का संकर है। - इस उदाहरण में कारिकाध वाले स्मृति अलंकार से कुछ भेद पाया जाता है। वहाँ कमल को देखकर प्रियामुख की याद आती है, इस प्रकार उस स्मृति के उदाहरण में सहश वस्तु का ही स्मरण होता है, जब कि इस उदाहरण में लक्ष्मी के समान नायिका को जल से निकलते देखकर कृष्ण को लक्ष्मी के समुद्र से निकलने का स्मरण हो आता है, इस प्रकार यहाँ नायिका के सदृश सुन्दर लक्ष्मी के स्मरण के द्वारा उससे संबद्ध जलनिधिमं. थन की स्मृति हो आती है। प्रथम तत्सदृश वस्तु का स्मरण वाला उदाहरण है, दूसरा तत्सदृश वस्तु संबन्धिवस्तु का स्मरण वाला उदाहरण । यहाँ उपमानोपमेयभाव उक नायिका तथा लक्ष्मी में है। भ्रांति का उदाहरणः कोई भौंरा तोते की चोंच को पलाश की कलिका समझ कर उस पर गिर रहा है, और तोता भी भौंरे को जामुन का फल समझ कर उसे पकड़ना चाहता है।
SR No.023504
Book TitleKuvayalanand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas
PublisherChowkhamba Vidyabhawan
Publication Year1989
Total Pages394
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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