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________________ भूमिका सूची के प्रसिद्ध छंदःशास्त्र के २१ ग्रन्थों में भी उल्लेख नहीं हैं और कतिपय छंद ऐसे हैं जो केवल हेमचन्द्रीय छंदोनुशासन, पिंगलकृत छंदःसूत्र, हरिहरकृत प्राकृतपिंगल और दुःखभजनकृत वाग्वल्लभ में ही प्राप्त होते हैं। इन विशिष्ट छंदों की वर्गीकृत तालिका इस प्रकार है :वृत्तमौक्तिक के विशिष्ट छन्द___ मात्रिक छन्द :-कामकला, हरिगीतकम्, मनोहर हरिगीतम्, अपरा हरिगीता, मदिरा सवया, मालती सवया, मल्ली सवया, मल्लिका सवया, माधवी सवया, मागधी सवया, घनाक्षर, अपर समगलितक और अपर संगलितक । वणिक छन्दः -१४ अक्षर - शरभो, अहिधृति; १६ अक्षर - सुकेसरम्, ललना; १७ अक्षर - मतंगवाहिनी; १६ अक्षर - नागानन्द, मृदुलकुसुम; २० अक्षर - प्लवंगभंगमंगल, अनवधिगुणगण; २१ अक्षर - ब्रह्मानन्द, निरुपमतिलक; २२ अक्षर - विद्यानन्द, शिखर, अच्युत; २३ अक्षर - दिव्यानन्द; कनकवलय; २४ अक्षर - रामानन्द, तरलनयन; २५ अक्षर-कामानन्द, मणिगुण; २६ अक्षरकमलदल और विषमवृत्तों में भाव तथा वैतालीय छंदों में नलिन और अपर नलिन । __ इस प्रकार मात्रिक छंद १३ और वर्णिक छंद २४ कुल ३७ छन्द ऐसे हैं जिनका अन्य छंदःशास्त्रों में उल्लेख नहीं है। निम्नलिखित ११ छंद केवल हेमचन्द्रीय छन्दोनुशासन एवं वृत्तमौक्तिक में ही प्राप्त हैं : मात्रिक छन्द :-विगलितक, सुन्दरगलितक, भूषणगलितक, मुखगलि तक, विलम्बितगलितक, समगलितक, विक्षिप्तिकागलितक, विषमितागलितक और मालागलितक । वणिक छन्द-१३ अक्षर - सुद्युति और २१ अक्षर - रुचिरा। १८ वर्ण का लीलाचन्द्र नामक छन्द प्राकृतपिंगल और वृत्तमौक्तिक में ही प्राप्त है। निम्नांकित १७ वर्णिक छंद वृत्तमौक्तिक और दुःखभंजन कवि रचित वाग्वल्लभ में ही प्राप्त हैं । ८ अक्षर - जलद; ६ अक्षर – सुललित; १० अक्षर - गोपाल, ललितगति; . ११ अक्षर - शालिनी-वातोर्युपजाति, बकुल; १३ अक्षर - वाराह, विमलगति; १४ अक्षर - मणिगण; १५ अक्षर - उडुगण; १७ अक्षर - लीलाधृष्ट; १८
SR No.023464
Book TitleVruttamauktik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishtan
Publication Year1965
Total Pages678
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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