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________________ षष्ठः परिच्छेदः एवं ध्वनिगुणीभूतव्यङ्गयत्वेनं काव्यस्य भेदद्वयमुक्त्वा पुनदृश्यश्रव्यभेदद्वयमाह दृश्यश्रव्यत्वभेदेन पुनः काव्यं द्विधा मतम् । दृश्यं तत्राभिनेयम्तस्य रूपकसंज्ञाहेतुमाह __-तद्रूपारोपात्तु रूपकम् ॥१॥ . तद् = दृश्यं काव्यं नटे रामादिस्वरूपारोपाद्रूपकमित्युच्यते । कोऽसावभिनय इत्याह भवेदभिनयोऽवस्थानुकारः, स. चतुर्विधः । आङ्गिको वाचिककश्चैवमाहायः सात्विकस्तथा ॥ २॥ यो विश्वरङ्गभुवि जीवगणं च पात्र कृत्वा ततोऽभिनवकाभिनयान्प्रदश्य। , . : ख्यातोऽस्ति कोऽपि कुतुको चिरसूत्रधारापायात्स शिष्टनिवहं निखिलाबपायात ॥१॥ ___ अथ दृश्यकाव्यं निरूपयितुमुपक्रमते एवमिति । दृश्येति । अभिनेयम् अभिनेतु योग्यं तव रूपकम् ॥१॥ .. नटे = अनुकतरि । भेदप्रदर्शनपूर्वकमभिनयं लक्षयति-भवेदिति । अवस्थाऽ. नुकारः अवस्थाऽनुकरणम् अभिनयः । तस्य भेदं प्रदर्शयति-पातिक इति। अनेन निवृत बालिका, बागमत इति भावः । तेन निवृत्तम्" इति ठक् । वचसा निवृतः वाचिकः । आहार्यः= इस प्रकार ध्वनि और गुणीभूत व्यंग्यके रूपसे काष्पके दो भेदोंको बतलाकर फिर दृश्य और अव्यके रूपमें दो भेदोंको कहते हैं___दृश्य और श्रव्यके रूपमें काव्य फिर दो प्रकारका माना गया है। उसमें बभिनयके योग्य काव्यको "दाय" कहते हैं। उसके 'रूपक' नाम होने में कारण बतलाते हैं- . नटमें राम बादिके स्वरूपका आरोप होनेसे उस दृश्य काव्यको "रूपक" भी कहते हैं ॥१॥ "अभिनय" किसे कहते हैं ? यह बतलाते हैं नटोंसे गम और युधिष्ठिर आदिकी अवस्थाके अनुकरणको "अभिनय" कहते हैं, यह चार प्रकारका होता है- आङ्गिक ( मनसे होनेवाला ), वाधिक (बचनसे
SR No.023456
Book TitleSahityadarpanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSheshraj Sharma Negmi
PublisherKrushnadas Academy
Publication Year1994
Total Pages690
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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