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________________ (मूख) हैं। ६ लाभमद मेरे समान भाग्यशाली कोई भी नहीं है, मैं खोटा भी कार्य उठाता हूँ तो उसमें लाभ ही मिलता है। ७ तपमद-संसार में मेरी की हुई तपस्या के समान दूसरा कोई नहीं कर सकता, मैं महा तपस्वी हूं, देखो तपस्या की उत्तमता से लोग मुझे खूब बाँदते, और पूजते हैं ऐसा दूसरों को कोई नहीं मानता इसलिये मैं ही महा तपोधन हूँ। ८ ऐश्वर्यमद-ठकुराई व संपत्ति या किसी ओहदे पर आरूढ़ हो कर घमंडी बन जाना, और दूसरे किसी की आज्ञा नहीं मानना, गद्दी का गधहा (गधा) बना रहना, दूसरों की और अपने पूज्य लोगों की प्रशंसा नहीं सहन करना, दूसरों को अपना सेवक समझना, और सब कहीं अपनी ही प्रशंसा की चाहना रखना। ये आठों मद आठों बातों की प्राप्ति में अन्तरायभूत हैं अर्थात् जातिमद से नीच जाति, कुलमद से अधमकुल, बलमद से निर्बलता, रूपमद से कुरूपी अवस्था, ज्ञानमद से अत्यन्त अज्ञानता (मूर्खता); लाभमद से दरिद्रता, तपमद से अविरति दशा तथा ऐश्वर्यमद से निर्धनता और सब का सेवकपना प्राप्त होता है; अत एव सज्जनों को किसी बात का भी मद नहीं करना चाहिये, संसार में ऐसी कोई बात नहीं है जिसका मद किया जाय। लोगों की भारी भूल है कि थोड़ी सी योग्यता पाकर अहंकार के वशीभूत हो जाते हैं। परन्तु यह नहीं सोचते कि सवैया ३१ साकेई केइ बेर भये भूपर प्रचण्ड भूप, बड़े बड़े भूपन के देश छीन लीने हैं। केई केइ बेर भये सुरभोनवासी देव, केई केइ बेर निवास नरक कीने हैं।। केई केइ बेर भये कीट मलमूत माहीं, ऐसी गति नीच बीच सुख मान भीने हैं। कौड़ी के अनंत भाग आपन विकाय चुके, गर्व कहा करे मूढ़ देख दृग दीने हैं।।१।। भावार्थ अनन्त दुःखात्मक इस संसार में कई बार ये सकर्मी प्राणीगण प्रभावशाली राजा हो चुके हैं, और अनेक समय राजाओं के श्री गुणानुरागकुलक ८५
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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