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________________ बिन्दु-बिन्दु विचार १. सज्जनों के साथ बैठना चाहिये, सज्जनों की संगती में रहना चाहिये और सज्जनों के ही साथ विवाद करना चाहिये । दुर्जनों से किसी प्रकार का संपर्क (सहवास ) नहीं करना चाहिये । २. यदि सज्जनों के मार्ग पर जितना चलना चाहिये उतना नहीं चलते बने तो थोड़ा ही थोड़ा चलकर आगे बढ़ने की कोशिश करो, रास्ते पर जब पाँव रक्खोगे तब सुख मिले ही गा । ३. मनुष्य को प्रतिदिन अपने चरित्र की आलोचना (विचार) करते रहना चाहिये और यह सोचना चाहिये कि मेरा आचरण (व्यवहार) पशु के तुल्य है किं वा सत्पुरुष के सदृश । ४. जैसे घिसने, काटने, तपाने और पीटने; इन चार बातों से सोने की परीक्षा होती है वैसे ही विद्या, स्वभाव, गुण और क्रिया; इन चार बातों से पुरुषों की जाँच होती है। ५. सच्चरित्र पुरुष का संक्षिप्त लक्षण इतना ही है कि उसमें सत्यप्रियता, शिष्टाचार, विनय, परोपकारिता और चित्त की विशुद्धता, गुण पाये जायँ, शेष जितने गुण हैं वे इन्हीं के अन्तर्गत हैं। ६. लोग अच्छे व्यवहार से मनुष्य और बुरे व्यवहार से पशुओं के तुल्य गिने जाते हैं। तुम यदि उदार, परोपकारी, विनयी, शिष्ट, आचारवान् और कर्त्तव्य-परायण होवोगे तो संसार के सभी लोग तुम्हें मनुष्य कहेंगे और तुम भी तब समझोगे कि मनुष्यता किसको कहते हैं। ७. सुशीलता, उच्चाभिलाषा अपने विभव के अनुसार भोजन, वस्त्र और भूषण का व्यवहार, दुर्जनों की संगति, अपनी प्रशंसा और पराये की निन्दा से विरत रहना, सज्जनों के वचन का आदर करना, सदा सत्य बोलना, किसी जीव को दुःख न पहुँचाना, सब प्राणियों पर दया करना; ये सब सुजनता के लक्षण हैं। ८. संसार में जितने बड़े-बड़े साधु, महात्मा, धार्मिक, योगी और कर्मकांडी आदि हुए हैं, जो अपने-अपने निर्मल चरित्र के प्रकाश से मानव समाज को उज्ज्वल कर गये हैं, वे सभी निःस्वार्थ और ऐश्वरीय प्रेमसंपन्न थे । ६. जिन लोगों ने बचपन में सौजन्य - शिक्षा का लाभ नहीं लिया, जो लोग सौजन्य - प्रकाश करने का संकल्प करके भी अपने १८६ श्री गुणानुरागकुलक
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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