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________________ 'परोपकार महागुण तुम्हारे साथ है और वह मानसिक, वाचिक तथा कायिक शक्ति का उत्पादक है, इसलिये सब गुण के पहिले इसी गुण को प्राप्त करने का अभ्यास करना चाहिये।' _ 'उपकार महादान, उपकार देवपूजा और उपकार मन को नियम में रखने वाली उत्तम समाधि है। उपकारकर्ता देव, गुरु, मित्र और सब कोई को प्रिय लगता है, उपकार के बिना कोई शुभकार्य सफल नहीं होता।' 'सूर्य, चन्द्र, मेघ, वृक्ष, नदी, गौ और सज्जन ये सब इस युग में परोपकार के लिये पैदा हुए हैं। जो मनुष्य प्रेम से पूर्ण हो परोपकार रूप यज्ञ करता है, उसको हिंसामय दूसरे यज्ञ करने की कोई आवश्यकता नहीं है।' 'स्वर्ग सुख से भी परोपकारी जीवन उत्तम है, जो मनुष्य कायम परोपकार कर सकता है उसको स्वर्ग में जाने की जरूरत नहीं है। उपकार रहित मनुष्य की अपेक्षा तो पत्र पुष्प और छाया के द्वारा उपकार करने वाले वृक्ष ही श्रेष्ठ है।' ___ 'उपकारी पुरुष का पिण्ड असली नाणा (सिक्का) के समान है, इससे वह चाहे जहाँ चला जाय उसकी कदर व कीमत होती है। खानदान कुटुम्ब का उपकार शून्य लड़का खोटे नाणा के समान है, इससे उसकी विदेश में भी कदर व कीमत नहीं होती।' __'यदि तुम्हारे हस्तगत कुबेर का भी भण्डार हो तो भी अपनी सन्तति को विद्या (हुन्नर) सिखाओ, चाँदी स्वर्ण की थैलियाँ खाली हो जाती हैं, लेकिन कारीगरी की थैली नहीं खुट सकती। जो हुन्नर होगी तो किसी की गुलामी करने का मौका नहीं आवेगा और न भिक्षा माँगना पड़ेगी।' 'जिस तरह मल को साफ करने के लिये जल, वस्त्र को साफ करने के लिये साबुन, शस्त्र को घिसने के लिये शराणी, सुवर्ण परीक्षा के लिये अग्नि और नेत्रों की सुन्दरता बढ़ाने के लिये अंजन की आवश्यकता है, उसी प्रकार सम्पूर्ण कलाकौशल और संपत्ति प्राप्त करने के लिये उपकार महागुण को सीखने की आवश्यकता है।' "जिस पुरुष को सन्मार्ग की प्राप्ति हुई हो और यदि वह यह चाहता हो कि जन्म जन्मान्तर में भी मुझे सन्मार्ग मिलता जाय, तो १५६ श्री गुणानुरागकुलक
SR No.023443
Book TitleGunanuragkulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashak Trust
Publication Year1997
Total Pages200
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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