________________
(ए)
हवे वे दिसितुं त्री ने त्रण अवग्रहनुं चोयुं द्वार कहे बे.
वंदंति जिणे दाहिए - दिसि हि पुरिस वामदिसि नारी नवकरजदन्नु सठि -- कर जिह मजग्गदो सेसो ॥२२॥ शब्दार्थः - जिनेश्वरनी दक्षिण दिशा एटले जमली बाजुये खजा रही ने पुरुषो वंदना करे अने वामदिशा एटले माबी वाजुए जा रही ने स्त्रीयो वंदना करे. प्रजुथी नवद्दाथ दूर रहेवाथी ज धन्य, साठ हाथ रहेवाथी उत्कृष्ट अनें नव तथा साउनी अंदर नजा रहेवाची मध्यम श्रवग्रह याय बे. ॥ २२ ॥ हवे चैत्यवंदन करवानुं पांच द्वार कहे .
नमुक्कारेण जहन्ना, चिश्वंदण मद्य दंमथुइजुला ॥ पणदंरु थुइचक्कग--थय पणिदाणेदिं उक्कासा ॥२३॥
•
शब्दार्थ:-- नवकार बोली नमस्कार करवाथी जघन्य, अरि इंत चेइयां युगल तथा चार स्तुति बोली नमस्कार करवाथी मध्यमाने पांच नमुनुरूप दंग तथा श्राव स्तुतिनां स्तवन नेत्रप्रणिधाने करने उत्कृष्ट चैत्यवंदना जाणवी ॥२३॥ न्ने बिंति गेणं, सन्चएणं जदन्नवंदणया ॥ तुगतिगेण मना, नकोसा चनहिं पंचदिं वा ॥२४॥ शब्दार्थः--केटलाक श्राचार्यों एम कहेबे के, एकवार नमुचुणं बो लवाथी जघन्य, बे अथवा त्रणवार नमुचुशं बोलवाथी मध्यम धने चार अथवा पांचवार नमुहु बोलवाथी नत्कृष्ट चैत्यवंदन थापडे. वे बहुं प्रणिपात तथा सातमुं नमस्कार द्वार कहे बे. पंचगो पणिवान, दोजाणू करडुगुत्तमंगं च ॥ सुमदनमुकारा, इग डुग तिग जाव असयं ॥ २७५॥
शब्दार्थ:- ढीच वे हाथ छाने मस्तक ए पांच अंग पृ ने काम नमस्कार करवा ते पंचांग प्रणिपात कड़ेवाय. ते