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गजुग जुग चनगेवि-अणुत्तरे शकिक्कपरिदाण॥३३॥
शब्दार्थः--जवनपति,व्यंतर,ज्योतिषी अने बीजाईशान देव. लोकनां अंत सुधीना देवोनांशरीरनी मुंचा सात हाथनी ले. त्यार पली बे, बे, बे, चार, नव ग्रैवेयक अने पांच अनुत्तर ए देवलो. कोमांअनुक्रमे एक एक हाथ शरीर प्रमाण उढं जाणवु.॥३३॥
हवे उ गाथावमे सर्वे जोवोनुं आयुष्य कहे . बावीसा पुढवीए, सत्तय आनस्स तिन्नि वानस्स ॥ वाससहसा दस तरु--गणाण तेउ त्तिरित्तान ॥३४॥
शब्दार्थः-पृथ्वीकाय-बावीस हजार वर्षनु, अप्कायनुसात हजार वर्षमुं, वायुकायनुंत्रण हजार वर्षमुं, प्रत्येक वनस्पतिकायतुं दश हजार वर्षतुं अने तेनकाय, त्रण अहोरात्रनुं उत्कृष्ट आयुष्य होय . ए सर्वे जीवोनुं जघन्यथी अंतर्मुहूर्त्तनुं श्रायुष्य होय .३४ वासाणि बारसाऊ, बेइंदियाणं तेइंदियाणं तु॥ अनणापन्नदिणाई, चनरिंदीणं तु उम्मासं ॥३५॥
शब्दार्थः प्रिय जीवोनुं आयुष्य बार वर्षमुं, तेरिंजिय जीवोनुं उगणपचास दिवसनुं अने चतुरिंजिय जीवोनुं उमासर्नु होय छे. श्रा सर्व उत्कृष्ट आयुष्य जाणवू अने ए सर्वे जीवोनुं जघन्यथी अंतर्मुहर्तनुं आयुष्य जाणवू. ॥ ३५ ॥ सुरनेरझ्याण विई, नक्कोसा सागराणि तित्तीसं ॥... चउपयतिरियमणुस्सा, तिन्नियपलियोवमा हुँति॥३६॥
शब्दार्थः-देवता अने नारकीयोनी उत्कृष्ट आयुष्यस्थिति तेत्रीस सागरोपमनी होय ने अने चार पगवाला तिथंच तथा मनु. योनी नत्कृष्ट श्रायुष्यस्थिति त्रण पस्योपमनी होय . ॥३६॥ जलयरनरजुयगाणं, परमाऊ होश पुरकोमी ॥ परकीणं पुण नणिन, असंखनागो थपलियस्स॥३॥