SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 7
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य की काव्य-प्रतिभा और साधना की ही नहीं मुक्ति के पथ पर तेज़ बढ़ते उनके क़दमों की आवाज़ भी साफ सुनाई देती है। अनुवाद कार्य में ख़ुद आचार्य पूज्यपाद ने मेरी कम सहायता नहीं की। समाधितन्त्र की उनकी रचना जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई है उसकी भाषा और अभिव्यक्ति सरलतर होती गई है। कई जगह लगता है जैसे छन्द नहीं मन्त्र और सूत्र सामने खुलते जा रहे हैं। खुशी है कि मैं समाधितन्त्र को हिन्दी में अनूदित कर सका। कोशिश की है कि अनुवाद मूल से उतना भी दूर न जाए जितना जहाज़ का पंछी जहाज़ से दूर जाता है। मैंने चाहा है कि मूल रचनाकार का आशय और कथ्य बिना किसी बाधा और आडम्बर के पाठक तक पहुँचे। यह भी खुशी है कि यह पुस्तक प्रकाशन के पूर्व संस्कृत की परम्परागत विद्वत्ता एवं आधुनिक सोच के धनी श्रीयुत गिरीश जानी और जैन तत्त्व के युवा अध्येता एवं चिन्तक श्री मनीष मोदी की पैनी नज़र से गुज़री है। समाधितन्त्र का दो वर्षों में तीसरा संस्करण निकल रहा है यह जानकर खुशी हुई। जयकुमार जलज 30 इन्दिरा नगर रतलाम मध्य प्रदेश 457 001 दूरभाष : 07412-260911, 07412-404208, 098936 35222 ई-मेल : jaykumarjalaj@yahoo.com
SR No.023440
Book TitleSamadhi Tantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaykumar Jalaj, Manish Modi
PublisherHindi Granth Karyalay
Publication Year2008
Total Pages34
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy