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________________ ६ - - तत्त्वोपनिषद्जिन के सौजन्य से इस प्रतियो की प्राप्ति हुई, ऐसे बहुश्रुत मुनिराजश्री जंबूविजयजी म.सा., सेवाभावी मुनिराजश्री कृपाबिन्दुविजयजी म.सा. एवं सहायकारी मुनिराजश्री सुधारसविजयजी म.सा. का हम कृतज्ञता से स्मरण करते है। जिनाज्ञाविरूद्ध निरूपण हुआ हो, तो मिच्छामि दुक्कडम् । क्षतिनिर्देश करने के लिये बहुश्रुतो को विनम्र प्रार्थना। कार्तिक कृष्ण १३, वि.सं.२०६७, अठवालाइन्स जैन संघ, - प. पू. प्राचीन आगम-शास्त्रोद्धारक आचार्यदेव श्रीमद्विजय हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा का शिष्य आचार्य विजय कल्याणबोधिसूरि सुरत. आत्मीयः परकीयो वा कः सिद्धान्तो विपश्चिताम्। द्रष्टेष्टाबाधितो यस्तु युक्तस्तस्य परिग्रहः।। योगबिन्दौ-५२५ ।। विद्वानों के लिए कोई भी सिद्धान्त अपना या पराया नहीं होता है। जो प्रत्यक्षादि प्रमाण से बाधित न हो, ऐसा सिद्धान्त किसी का भी हो, उसका स्वीकार करना उचित है। - आचार्य हरिभद्र
SR No.023438
Book TitleTattvopnishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherJinshasan Aradhak Trust
Publication Year
Total Pages88
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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