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________________ . ए पांचे ज्योतिषि विमानोने चलावनारा देवो चार दिशामां सरखे भागे रह्या छे ते कहे छे. ( पुरो) के० पूर्वदिशा ( सीहा ) के० सिंहनां रूपे, (दाहिणओ ) के० दक्षिण दिशाये ( हत्थी) के० हाथीनां रूपे, (पच्छिम ) के० पश्चिम दिशाये ( वसहा ) के० वृषभने सो अने (उत्तर) के० उत्तर दिशाये ( हया) के० घोडाने रूपे ( कमसो) के० अनुक्रमे करोने जागवा. ॥ ६४ ॥ तेज वात दृढ करवाने बीजी गाथाथी कहे छे:पुरो य हुंति सिंहा, दाहिणे कुंजरो महाकाए ॥ पच्छिमेण य वसहा, तुरगा पुण उत्तरे पासे ॥ ६५ ॥ ___अर्थः-चन्द्रना विमानने वहन करनारा सोल हजार देवो छे. तेमां (पुरो) के० पूर्व दिशामां (सिंहा ) के० सिंहनां रूपने धारण करनारा चार हजार देवो होय छे, (दाहिणे ) के० दक्षिण दिशामां कुंजरो ( महाकाए ) के० मोटा शरीरवाला हाथीनां रूपने धारण करनारा चार हजार देवो होय छे, (पच्छिमेण ५) के० पश्चिम दिशामां (वसहा ) के० वृषभनां रूपने धारण करनारा चार हजार देवो होय छे, (पुण ) के० वली ( उत्तरे पासे) के० उत्तर दिशामां (तुरगा) के० घोडानां रूपने धारण करनारा चार हजार देवो होय छे. एज प्रमाणे सूर्य विगेरेना विमानोने वहन करनारा देवोनी जे संख्या कही होय तेना चोथे भागे दरेक दिशामां सिंहादि रूपने धारण करनारा देवो होय छे एम जाणवू. ॥ ६५ ॥ __ सर्व ज्योतिषि देवोमां चन्द्र अधिक ऋद्धिवंत छे, माटे चंद्रनो परिवार कहे छे:
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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