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________________ के० सामानेंद्र, ३ (धाइ) के० धाता इंद्र, ४ (विहाए ) के० विधाता इंद्र, ५ ( इसी य ) के० वळी ऋषि इंद्र, ६ (इसिवाले) के० ऋषिपालेंद्र, ७ ( ईसर ) के० ईश्वरेन्द्र, ८ ( महेसरे) के० महेश्वरेन्द्र, (वि य) के० निश्चय ( हवइ ) के० होय. ९ (सुबत्ये) के० सुबत्सेंद्र, (य) के० अने १० (विसाले) के० विशालेन्द्र. ॥ ४६ ॥ ११ ( हासे ) के० हास्य इंद्र, १२ (हासरई ) के० हास्यरति इंद्र, (वि य ) के० वळी १३ (सेर ) के० श्वेतइंद्र, ( भवे ) के० होय. (तहा ) के० तेमन १४ ( महासेए) के० महाश्वेत इंद्र, १५ ( पयगे ) के पतंग इंद्र, १६ ( पयगवइ ) के पतंगपति इंद्र. ए वि य के० निधय (सोलसइंदाण) के० सोल इंद्रोनां ( नामाणि ) के नाम कयां. ॥ ४७ ॥ ___ आ वाणव्यंतर देवोना सोल इंद्र कया. तेनी पहेला व्यंतर देवोना पण सोल इंद्रो कया छे. सर्व मली बत्रीस इन्द्र थया. तेमनी साये भुवनातिना वीश, सूर्य चंद्रना बे अने वैमानिकन। दश मली चोसठ इंद्रो गणाय छे. ____ हवे व्यंतर तथा ज्योतिषि देवोना सामानिक अने आत्मरक्षक देवो सरखा छे, माटे साथे संख्या कहे छे:सामाणियाण चउरो, सहस्स सोलस य आयरक्खाणं ॥ पत्तेयं सव्वेसि, वंतखइ ससिखीणं च ॥ ४८ ॥ ५२, ___ अर्थः-(सव्वेसि ) के० सर्व एटले बत्रीश (वंतरवइ ) के० व्यंतर इन्द्रोने (च) के० अने (ससिरवीणं) के० सूर्य अने चंद्रने ते ( पत्तेयं ) के० दरेकने ( सामाणियाण) के० सामानिक देवो ( चउहोसहस्स ) के चार हजार अने ( आयरक्खाणं ) के० अंगरक्षक देवो ते ( सोलसय ) के० शोल हजार होय छे. ॥४८॥
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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