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गोला है. वली ( असंखनिग्गोयओ) के० असंख्याता निंगोदे गोलो (हवइ ) के० एक गोलो थाय छे तथा (इकिकंमि निगोए) के ॐ एक एक निगोदने विषे ( अनंतजीवा मुणेयव्या ) के० अनंता जीवो जाणवा ॥ अहिं निगोदिया जीवोना वे भेद छे. एक संव्यवहारिया बीजा असंव्यवहारिया. तेमां जे अनादि निगोदथी freat पृथ्वीकायामां जाय ते संव्यवहारिया कहेवाय. कदापि ते जीव फरी पाछो निगोदमां जाय तो पण संव्यवहारीकज कठेवाय पण जे जीवो सूक्ष्म तथा बादर निगोदमांथी निकल्याज नथी ते असंव्यवहारिया कहेवाय छे. ॥ ४३७ ॥ अस्थि अगंता जीवा, जेहिं न पत्तो तसाइ परिणामो ॥ उप्पज्जंति चयंति य, पुणोवि तत्थेव तत्थेव ॥ ४३८ ॥
अर्थ - ( अनंता जीवा अस्थि ) के० तेवा अनंताजीवो के के ( जेहिं ) के० जे जीवो ( तसाइपरिणामो ) के० त्रस विगेरेना परिणामने ( न पत्ता ) के० पाम्या नथी, ते जोवो ( पुणोवि ) के० फरीफरीने ( तत्थेव तत्थेव ) के० त्यांने त्यांज (उपज्जति चयंति य) के० उपजे छे अने चवे छे || ४३८ ॥ सामग्गी अभावाओ. ववहाररासिम्म अपत्ताओ ॥ सव्वाव ते अनंता, जे मुत्तिसुहं न पविंति ॥ ४३९ ॥
अर्थ - (सामगी अभावाओ ) के० सकाम निर्जरा तथा अकामनिर्जरारूप सामग्रीना अभावथी ( ववहार रासिम्मि ) के० व्यवहारराशीमां ( अपत्ताओ ) के० न पामेला (सहावि ते अनंता) कं० तेवा सर्व जीवो पण अनंता छे के (जे) के० जे जीवो (मुत्तिसुहं न पार्वति ) के० मुक्तिसुखने पामता नथी ॥ ४३९ ॥