________________
२१५
हो नारकीने संघयण अने लेश्या कहे छे. दो पढमपुढविगमगं, छेवढे कीलियाइ संघयणे ॥ इकिक्कपुढविवुढी, आइतिलेस्सा उ नरएसु ॥ ३७९ ॥२९ ___अर्थ-(छेवढे ) के छेवट्ठा संघयणवालो जीव (दो पढमपुढविगमणं ) के० पहेली बे नरकपृथ्वी सुधी जाय, अने (कीलियाइ संघयगे ) के० कीलिकादिक संघयणवालाजीवोनी (इविक्कपुढविवुड्डी ) के० एक एक नरकपृथ्वीनी वृद्धि करवी. जेम कीलिका संबयणवाला त्रीजी नरकपृथ्वी सुधी जाय. अर्द्धनाराचवाला चोथी सुधी, नाराचवाला पांचमी सुधी, ऋषभनाराचवाला छठी सुधी अने वज्रऋषभनाराचवाला सातमी नरकपृथ्वी सुधी जाय. ए उत्कृष्टी गति जाणवी. जघन्यथी तो सर्वे संघयणवाला जीवो रत्नप्रभाना पहेला प्रतर सुधी जाय. ॥ हवे नारकीने लेश्या कहें छे. ॥ (उ) के० वली (नरएसु) के नारकीने विषे (आइतिलेस्सा ) के० कृषण नील अने कापोत ए प्रथमनी त्रण लेस्या होय. ॥ ३७९॥
हवे ए लेश्याओने विशेषे विवरीने कहे छे. दुसु काऊ तइयाए, काऊ, नीला य नील पंकाए । धूपोए नीलकिण्हा,दुसु किण्हा हुंति लेस्साओ॥३८०॥ ___ अर्थ-(दुसु) के० पहेली बे नरकमां (काऊ) के० एक कापोतलेश्पा होय. परन्तु पहेली करतां बोजीमां अतिमलीन लेश्या होय. (तइयाए ) के० त्रीजी नरकमां (काऊनीला य) के० कापोत अने नील लेश्या होय. तेमां पल्योपमना असंख्यातमा भोगे अधिक एवा त्रण पल्योपमना आयुष्यवालाने कायोत अने तेथी अधिक आयुष्यवालाने नील लेश्या होय छे. अने (पंकाइ) के० पंकप्रभामां