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________________ २१३ देवताना सरखी एटले एक समयमां एक वे त्रण छेवट संख्याता अने असंख्याता सुधीनी मुणेयवा के० जाणवी. ए नारकीनुंं उपपात विरहद्वार तथा चवनविरहद्वार क. हवे कयो जीव नरके जाय ते गतिद्वार कहे छे. संखाउ पजस पगिंदि–तिरिनरा जंति निरणम् ॥ ३७५ || २ अर्थ - ( संवाउ ) के० संख्याता आयुष्पवाला ( पजत्त ) के० पर्याप्ता (पणिदि तिरिनरा) के० पंचेंद्रिय तिर्येच अने मनुष्य नरका बांधे तो ( अंति निरएस) के० नरकमां जाय छे. ॥ ३७५ ॥ हवे कयो जीवो नरकायु बांधे ? ते कहे छे. मिच्छदिट्टि महारंभ, परिग्गहो तिब्वकोह निस्सीलो ॥ नरयाऊय निबंध, पावमई रुद्दपरिणामो ॥ ३७६ ॥ २८ अर्थ - (मिच्छदिट्टि) के० मिथ्यात्वी, ( महारंभ ) के० मोटा आरंभ करनारो, (परिगहो ) के० बहुपरिग्रहधारी, (तिब्ब कोह) के० आकरा क्रोधवालो, (निस्सीलो) के० शील रहित, (य) के० वली (पावमई) के० पापबुद्धिवालो अने ( रुद्द परिणामो) to रौद्रपरिणाम एवो जीव ( नरयाउ ) के० नरकनुं आयुष्य (निबंध) के० बांधे छे. ॥ ३७६ ॥ हवे विशेषपणाथी जूदी जूदी नरकगतिए जनारा जीवो कहे छे. असन्नि सरिसिव पक्खी, सीह उरगि त्थि जंति जाछट्ठि ॥ कमसो उक्कोसेणं, सत्तम पुढवी मणुयमच्छा ||३७७॥ / (m) अर्थ - ( असन्नि) के० असंज्ञी सम्मूच्छिम पंचेंद्रिय पर्याप्तो २ तिर्येच जो नरकायु बांधे तो पहेली नरके जाय, त्यां ते जघन्यथी
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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