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________________ २०३ सत्तसया पणतीसा, नव नवई सहस्स दोन्नी लक्खा य॥ धूमाए सेढिगया, पणसट्ठी दोसया हुँति ॥ ३५७ ॥ अर्थ-( धूमाए) के० पांचमी धूमप्रभा नरकपृथ्वीमा (दोन्नी लावाय ) के बे लाख ( ना नई सहस्स) के० नवाणु हजार, (सत सया ) के सात सो अने (पण सोसा) के पांत्रीस एटला पुष्पावकीर्ण नरकावासा छे. तया (सेडिनया ) के श्रेणिमा रहेला ( दो सया) के० बसो अने (पगसट्टी) के पांसर एटला नरकावासा के. सर्व मली त्रण लाव नरकासा पांचमी धूमप्रभा नरकपृथ्वीमा छे. ॥ ३५७ ॥ नवनवइओ सहस्सा, नव चेव सया हाति बत्तीसा॥ पुढवीए छट्ठीए, सेढीगया हुंति तेसट्ठा ॥ ३५८ ॥ १ ____ अर्थ-( पुढवीए छट्ठीए) के छट्ठी तमप्रभा नरकपृथ्वीमा (नवनवइओ सहस्सा ) के नवाणुं हजार, ( नव सया) के नव सो अने ( बत्तीसा ) के बत्रीश. एटला पुष्पावकीर्ण नरकावासा ( चेव ) के० निट ( हति ) के छे. तथा [ सेहीगया ] के० श्रेणिमा रहेला [ तेसट्टा ] के त्रेसउ नरकासा ( हुंति ) के छे. सर्व मली नवाणु हजार नव सो पंचाणु नरकवासा छट्टी तमप्रभा नरकपृथ्वीमां छे. सातमी नरकपृथ्वीमां पांचज नरकावासा छे. पुष्पावकीर्ण नथी. ॥ ३५८ ॥ ते णं नरगावासा, अंतो वट्टा बहिं च चउरंसा ॥ हिट्ठा खूरप्पसंठाण-संठीया पर मदुगंधा ॥ ३५९.॥ अर्थ-[ नेणं नरगावासा ] के० ते पूर्व वर्णवेला सर्वे नरका.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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