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________________ .१९७ हरेक प्रत दिशा तथा विदिशानी आवलीना मल्या सर्वे नरकावासानी संख्या जाणवा माटे करण कहे छे. t इट्ठपयरेगदिसि संखा, अडगुणा चउविणा सद्गसंखा ॥ २५८ जह सीमंतयपयरे, एगुणनउया सया तिन्नि ॥ ३४८ ॥ २८ अपट्ठाणे पंच उ, पढमो मुहमंतिमो हवइ भूमि ॥ २५७मुहभूमिसमासद्धं, पयरगुणं होइ सबधणं ॥ ३४९ ॥ २६अर्थ - ( इहपयर ) के० वांछितप्रतरनी (एग दिसि ) के० एक दिशाने विषे ( संखा ) के० जे नरकावासानी संख्या छे ते आव लीनो अपेक्षाये छे. आवली आठ छे माटे ते संख्याने ( अडगुणा ) के० आठगुणी करीये, पण विदिशामां एक एक नरकावास ओछोहोवाथी (चडविणा ) के० चार ओछा करीये. पछी ( स ) के० एक इंद्रक नरकावास सहित करीये एटले ( इगसंखा ) के० एक प्रतरे नरका वासानी संख्या थाय. (जह ) के० जेम रत्नप्रभाना ( सीमंतयपयरे ) के० सीमंत नामना पहेला प्रतरमा एकदिशाना नरकावासानी संख्या ओगणपचास छे, तेने आठगुणा करीये त्यारे णसो बाणुं थाय. तेमांथी चार ओछा करता त्रण सो अयाशी रहे. मां एक इंद्रक मेलवीये त्यारे (एगुणनउया सया तिन्नि) के० त्रण सो ने नेव्याशी थाय. एवीजरीते वीजे प्रतरे एज प्रमाणे गणतां त्रण सो एक्याशी आवलिका गत नरकावासा होय. ॥ ३४८ ॥ एवीज रीते वेल्ला ओगणपचासमा (अहाणे ) के० अइठाण प्रतरे एक दिशाये एक नरकावासो छे, तेने आठ गुणो करता आठ थाय तेमांथी विदिशाना चार काढी नाखीये. बाकी चार रहे तेनी साथै एक इंद्र मेलवतां सातमो नरके आवलिका गत नरकावासा (पंच) के० पांच थाय ॥ *
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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