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________________ १८४ अर्थात् सौथी उपर नानुं, तेनी नीचे मोहुं, वली तेनी नीचे मोडं एवी आकृतिये छे. ॥ ३१८ तत्थ सहस्सा सोलस, खरकंडं पंकबहुलकंडं तु ॥ चुलसीइ सहस्साई, असीइ जलबहुलकंडं तु ॥ ३९९ ॥ ча 6 अर्थ - पहेली रत्नप्रभा पृथ्वीनो पींड एक लाख एंशी हजार योजननो जाडपणे छे. ( तत्थ ) के० तेमां पहेलो ( खरडं ) के० खरकांड (सहस्सा सोलस ) के० सोलहजार योजननो छे, (तु) के० अने बीजो ( पंकबहुलकडे ) के० पॅकबहुलकांड ( चुलसी सहस्साई ) के० चोराशी हजार योजननो छे. ( तु ) के० वली त्रीजी ( जलबहुलकंडे ) के० जलबहुलकांड ( असाइ ) के० एंशी हजार योजननो छे. ॥ ३१९ ॥ एवं असी उ लक्खा, खरकंडाइ हि धम्मढवी || सेसा पुढवी सरुवा, पुढविओ हुंति बाहुले || ३२०|| अर्थ - ( एवं ) के० ए प्रमाणे ( खरकंडाइ) के० खरकांड विगेरे ( धम्मपुढवीए) के० धर्मा पृथ्वीमां अनुक्रमे त्रणे पृथ्वीकांड एकठा करता (असी लक्खा) के० एक लाख ऐंशी हजार पृथ्वीपड थाय. (सेसा पुढवी सरुवा) के० बाकी शर्करा प्रभाथी आरंभीने पृथ्वीना स्वरूप (बाहुले) के० घणुकरीने (पुढविओ) के० गोत्र प्रमाणेज हुति के० होय छे. ॥ ३२० ॥ हवे पृथ्वीनो पींड तथा पृथ्वीनो आश्रय कहे छे. असीइ बत्तिस अडविस, वीसा अट्ठार सोल अडसहसा ॥ लक्खुवरि पुढविपिंडो, घणुदहि घणवाय तणुवाया || ३२१ ||
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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