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________________ के० नीचे विस्तारवालो, (तहोवरि तणुओ ) के० तेमज उपर सांकडो एवो (मुयंगो) के० मृदंग होय छे. (पुप्फसिहावली रहिया)के० पुष्प समूहथी रचेली (चंगेरी) के० एटले नीचेनी पडगी सहित छाबडी ते (पुप्फचंगेरी)के० पुष्पचंगेरी कहेवाय छे. ॥३०॥ जवनालउत्ति भन्नइ, उपभोसए कंचुओ कुमारीए ॥१५५ एए अबद्धाकारा, देवा जागंति जिणवुचा ॥ ३०६ ॥ ... अर्थ-(कुमारीए) के० कुमारिकाना (उपभोसए) के उंची करेली बे बाहुवाला (कंचुओ) के० कंचुवाने (जवनालउत्ति भन्नइ ) के० जवनाल एम कहेवाय छे. (एए अवद्धाकारा ) के० ए अवधिज्ञानना आकारने (देवा) के० देवता (जाणति ) के० जाणे छे अने ए अवधिज्ञानना आकारो (जिणवुच्चा) के० जिनेश्वरे कह्या छे. ॥ ३०६ ॥ हवे नारकी देवता मनुष्य अने तिर्यच ए चरिमां कोने का दिशाए अवधिज्ञान वधारे ? ते कहे छे. उ8 भवणवणाणं, बहुगो वेमाणियाण हो ओही ॥ नारय जोइस तिरियं, नरतिरियाग अणेगविहो ॥३०॥ __ अर्थ-(भवणवणाणं) के० भुवनपति तथा व्यंतर देवताओंने अवधिज्ञान (उ) के० उचु (बहुगो) के० घणुं होय छे. तिर्छ तथा नीचं थोडं होय छे. तेमज (वेमाणियाण) के० वैमानिक देवताने (ओही) के० अवधिज्ञान (अहो) के० नीचुं घणुं होय छे उंचु तथा तिई थोड़ें होय छे. वली (नारय जोइस ) के० नारकी अने ज्योतपाने अवधिज्ञान (तिरियं) के तिर्छ धगु होय छे. उंचं नचुं थोडं होय छे. तथा (नरतिरियाणं) के० मनुष्य अने तियेचने
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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