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________________ १६९ हवे देवताने भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान- क्षेत्र कहे छे. दोकप्प पढमपुढविं, दो दो दो बीय तइयगं चउथिं ॥ चउ उवरिम ओहीए, पासंति पंचमं पुढवि ॥ २९८ ॥ - अर्थ-( दोकप ) के० पेहेला बे देवलोकना उत्कृष्टआयुष्यचाला देवता अवधिज्ञानथीं ( पढमपुढवि ) के० पहेली नरकं पृथ्वी सुधी देखे छे. तेउपरना (दो) के० सनत्कुमार अने माहेंद्र देवलोकना उत्कृष्ट आयुष्यवाला देवता ( बीय के बीजी शर्करम भासुधी देखे. ते उपरना ब्रह्म अने लांतक ए वे देवलोकना उत्कृष्ट आयुष्यवाला देवता ( तइयगं) के० त्रीजी कालुकाप्रभासुधी देखे. ते उपरना शुक्र अने सहस्रार देवलोकना देवता (चउथिं ) के० चोथी पंकप्रभासुधी देखे. तेना ( उपरिम) के० उपरना (चउ) के० आनत माणत आरण अने अच्युत ए चार देवलोकना देवता (ओहिए ) के० अवधिज्ञानथी (पंचमं पुढवि ) के० पांचमी धूमप्रभा नरक पृथ्वी सुधी (पासंति) के० देखे छे. अहिं एटलं विशेष के आनत प्राणतना देवताथी आरण अच्युत देवलोकना देवता पांचमी पृथ्वीना प्रतरे अति विशुद्ध पर्यायवंत देखे. एवीरीते ज्यां ज्यां बेबे जोडला छे त्यां पहेलाथकी बीजो सुविशेष देखे एम जाणवू ॥ २९८ ॥ 30 छठिं छगेविज्जा, सत्तमिईयरे अणुत्तर सुरा उ ॥ किंचूगलोगनालिं, असंखदीवुदहि तिरियं तु ॥२९९॥ ० ___ अर्थ-त्रण नीचेना अने त्रणे मध्यना एम (छगेविजा) के० छ ग्रैवेयकना देवता अवधिज्ञानथी (छडिं) के० छठी तमाममा मुधी देखे अने (ईयरे) के० उपरना त्रण ग्रैवेयकना देवता (सत्तमि)
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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