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________________ १२ तीससागराई ) के० एकत्रीश सागरोपमनुं जघन्य आयुष्य होय. ( पुग) के० वली ( सबठ्ठे ) के० सर्वार्थसिद्ध नामना पांचमा अनुत्तर विमानने विषे ( जहन्नठि नत्थि ) के० जघन्य आयुष्य नथी ॥ वैमानिक देवीओ केला देवलोक सुवी होय छे ? तथा केला प्रकारनी होय छे ? ते अर्धी गाथा वडे कहे छे. परिगहियाणियराणि य, सोहम्मीसाण देवी || ११ || अर्थः- (देवी) के० वैमानिक देवीनी उत्पत्ति ( सोहम्मीसाण ) ० सौधर्म तथा ईशान ए वे देवलोकने विषे होय छे. अने ते देवीओ बे प्रकारनी छे. ( परिगहियाणिइयराणि य ) के० एक परिग्रहिता ते परणेली कुलांगना सरखी अने बीजी अपरिग्रहिता ते साधारण गणिका सरखी जाणवी ॥ ११ ॥ हवे एक इंद्रनाभवमां केटली देवीओ उत्पन्न थइ मरण पामे ? ते वे गाथावडे कहे छे. दोकोडाकोडीओ, पंचासी कोडी लक्ख इगसयरी | कोटिसहस्स चउकोडि - सयाण अडवीसकोडीणं ।। १२ ।। सत्तावन्नं लक्खा चउदससहस्साय दुस १ देवोमां मनुष्यवत् परणवानी विधी नथी परन्तु अमुक एक पतिदेवनीज ते देवी गणाती होवाथी पतिव्रतापशुं होय छे. प्रथम पतिदेव चवी गयाथी बीजो तेज स्थाने उपजेला देवने पुनः पति तरीके अंगीकार करे तो पण पतिव्रतापणुं लोपाय महि एवी देवलोकनी मर्यादा छे.
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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