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________________ १५९ : रहित अ ( निरुस्स ) के० राग रहित एवा (जंतुणो) के० प्राणीनो (एग उसासनिसासे ) के० एक श्वासोश्वास ( एसो ) के० ए (पाणुत्ति वुच्चर ) कहेवाय छे. ॥ २७६ ॥ एगा कोडि सतंसट्ठी, लक्खा सतहत्तरी सहस्सा य ॥ दोय सया सोलहिया, आवलिया इगमुहुत्तेण ॥ २७७॥ अर्थ - ( एगा ! कोडी ) के० एक क्रोड, ( सतसट्ठी लक्खा ) के ० ० सस लाख ( सतहत्तरी सहस्साय ) के सत्योतेर हजार, ( दोय सया ) के० अने ( सोलहिया ) के० शोल अधिक एटली ( आवलिया ) के० आवलिका ( इगमुहुत्तेण ) के० एकमुहूर्तमां थाय छे. ॥ २७७ ॥ लवसत्तहत्तरीए, होइ मुहुत्तो इमि ऊसासा ॥ २० 6; सगतीससयतिहुत्तर, तीसगुणा ते अहोरते ॥ २७८ ॥ अर्थ - बसो पंचोतेरमी गाथामां ओगणपचास श्वासोश्वासे एक लव को छे तेवा ( लवसतहत्तरीए ) के० सत्योतेर लवे (मुहुत्तो होइ ) के० एक मुहुर्त थाय छे. अने ( इमि ) के० एक मुहूर्तां [ सगंतीस तिहुत्तर ] के० सात्रीस सो अने तहोतेर ( ऊसासा) के० श्वासोश्वास थाय. हवे त्रीस मुहूर्ते अहोरात्री थाय छे माटे साडत्रीस सो अने तहोतेरने (तीसगुणा ) के० त्रीशगुणा करी त्यारे (अहोरते ) के० एक अहोरात्राम (ते) के० ते श्वासोश्वास केला थाय ! तो के- ॥ २७८ ॥ एवं च सयसहस्सं, ऊसासाणं तेर सहस्सा य ॥ नउयसरणं अहिया, दिवसनिसि हुँति विन्नेया ॥ २७९ ॥ |
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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