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________________ अवयके ( इगतीस ) के० एकत्रीश सागरोपमनुं आयुष्य थाय ते कही देखाडे छे. आठमा सहस्रार देवलोके अहार सागरोपम, नवमा आनत देवलोके ओगगीश सागरोपम, दशमा प्राणत देवलोके वीश सागरोपम, अग्यारमा आरग देवलोके एकवीश सागरोपम, अने बारमा अच्युत देवलोके बावीश सागरोपमर्नु उकृष्ट आयुष्य होय छे. वली त्रण त्रण ग्रैवेयकना त्रण जोडलां मली नव ग्रैवेयक उपरा उपरी रहेला छे. तेमां नीचेना त्रगमांना नीचेना सुदर्शन वेयके वीश, बच्चेना (बीजा) सुप्रतिष्ट ग्रैनेयके चोवीश अने उपरना त्रीजा मनोरम ग्रेवेयके पच्चीश सागरोपमनुं आयुष्य होय छे, वच्चेना त्रगमांना नीचेना., एटले चोथा सबभद्र अवेयके छवीश, वच्चेना एटले पांचमा सुविशाल वेयके सत्यावीश अने उपरना एटले छठा सोमनस ग्रैवेयके अहावीश सागरोपमनुं आयुष्य होय छे. तथा उपरना त्रणमानां नीचेना एटले सातमा सुमनस ग्रैवेयके ओगणत्रीश, वच्चेना एटले आठमा पीयंकर देयके त्रीश अने उपरना नवमा आदित्य ग्रैवेयके एकत्रीश सागरोपमर्नु उत्कृष्ट आयुष्य होय छे ॥ ८ ॥ एहथी उपरना विजय वैजयंत जयंत अपराजित अने सर्वार्थसिद्ध ए पांचे अनुत्तर विमानने विषे देवता- (तित्तिस ) के० तेत्रीश सागरोपमनुं उत्कृष्ट आयुष्य जाणवू. ( सोहम्माइसु ) के० सौधर्म देवलोकथी मांडी पांच अनुत्तर विमान सुधीना वैमानिक देवतानी (इमा ) के० आ (जिहा ठिइ) के० उत्कृष्ट स्थिति कही. हवे वैमानिक देवोनुं जयन्य आयुष्य बे गाथाथी कहे छे:सोहम्मे ईसाणे, जहन्नहिई पलियमहियं च ॥९॥ दो साहि सत्त दस चउ-दस सत्तर अयराइं जा सहस्सारो ॥ तप्परओ इकिकं, अहियं जाणुत्तर
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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