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________________ १०९ छे. अने ते उंचाइ (माघवइतलाओ ) के० सातमी नरक पृथ्वीना लियाथी ( जा सिद्धि) के० सिद्धशीला सुधी जाणवी ॥ १९४॥ सगवण्ण रेह तिरियं, उवं पुण पंच रज्जु चउअंसे || इमरज्जु वित्रायय, चउदसरज्जुच्च तसनाडी || १९५॥ अर्थ - ( सगवण्ण रेह ) के० सत्तावन रेखा ( तिरियं ) के० तिछीं एटले आडी लखत्री ( पुणे ) के० अने (पंच) के० पांच रेखा (उच्च) के० उभी लखवी, तथा ( रज्जु ) के० एक राजना ( चउसे ) के० पा पा भागना चार विभाग एटले खांडवा करवा, चउरानी ( तस नाडी ) के० त्रनाडो एटले मध्यनाडी ( इगरज्जु वित्थरायय) के० एकराज लांबी पहोली छे. अने ( चउदस रज्जुच्च ) के० चउदराज प्रमाण उंची छे. ॥ तात्पर्य एछे के सत्तावन रेखा तिच्छीं करवी अने पांच रेखा उभी करी, एटले सत्तावन रेखाना चउदरोजना छप्पन्न खांडवा थाय, अने पांच रेखानी एक राज पहोली त्रसनाडी छे. तेना पा पा भाग करता चार खांडवा थाय, तेमज उचाइमां पण एक राजना चार खांडवाना प्रमाणे चउदराजना छप्पन्न खांडवा थाय. १९५ ये चउद राजलोकना खांडवा कहेवानी इच्छाथी प्रथम ऊर्ध्व लोकना सात राजना खांडवा कहे छे. उढे तिरियं चउरो, दुसु च्छ दुसु अट्ठ दस य इक्किके || वारस दोस सोलस, दोसु वीसा य चउसु पुणे। ॥। १९६ ॥ अर्थ - ( उढे ) के० अरना तीच्छ लोकने विषे वे पंक्तिमां ( तिरियं ) के० तीच्छ चउरो के चार खांडवां छे. तेनी उपर ०
SR No.023435
Book TitleBruhat Sangrahani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrasuri
PublisherUmedchand Raichand Master
Publication Year1924
Total Pages272
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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