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________________ या शुद्ध रूपसे बोले नहीं जा सकते। इसलिये कारकका गूढ़ होना भी स्वाभाविक ही है । ऐसा कहा भी जाता है कि-'न कण्ठमेति कारकं कठिनम् =कठिन-गूढ होनेके कारण कारक कण्ठगत नहीं होता है। संक्षेपमें-वाक्योंमें किन परिस्थितियोंमे तथा किस तात्पर्यसे किन विभक्तियोंका प्रयोग हो, तथा कौनसे पद किस कारकमें प्रयुक्त हुए हैं.---यह कारकका प्रतिपाद्य विषय है, जिसके जाने विना भाषाका हार्द समझना अशक्य है। ___यद्यपि कारकसूत्रोंके ऊपर भिन्न-भिन्न संस्कृत व्याकरणों में अनेक टीकायें लिखी गयी हैं । तथा प्रत्येक टीकाकी अपनी-अपनी विशेषता भी है । एवं किसी एक टीकाके अध्ययनसे कारककी सभी विशेषताओंका ज्ञान तथा मनमें उठनेवाली शंकाओंका समाधान नहीं हो सकता, यह समझने योग्य है। इसके साथ यहभी उतना ही सत्य है कि सभी टीकाओंका अध्ययन दुःसाध्य है। इस आशयसे कारकके संक्षेपसे ज्ञानकेलिये विद्वानोंने कारकको लेकर पृथक्-पृथक कितनेही प्रकरण ग्रन्थभी लिखे हैं । तथापि कारकके सभी रहस्यों का प्रकटीकरण तथा शंकाओंका समाधान किसी एक ग्रन्थसे नहीं हो सकता । . इसलिये इस समयमें संस्कृतभाषाके जिज्ञासुओंके लिये कार. कविषयके एक संग्रहात्मक ग्रन्थकी अत्यन्त आवश्यकता थी, जिससे जिज्ञासुओंको संक्षेपमें कारकके रहस्योंका ज्ञान, शंकाओंका समाधान तथा तदनुसार प्रयुक्त वाक्यों के आधारपर कारकका बौद्धिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकारके ज्ञान हों। इस आकांक्षाकी पूर्ति प्रस्तुत प्रमाख्य टिप्पणी तथा भद्रङ्करोदयाव्याख्यासहितकारकमाला
SR No.023434
Book TitleKarakmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhankarvijay, Suryodayvijay
PublisherLakshmichand Kunvarji Nagda
Publication Year1961
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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