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________________ यद्यपि सम्पूर्ण व्याश्रयमहाकाव्यकी अभयतिलकविजयजी गणिकृत व्याख्या उपलब्ध है । जो खण्डान्वयके आधारपर की गयी है तथा उत्तमभी है। फिरभी इन १०९ श्लोकोंकी भद्रङ्करोदया व्याख्याकी अपनी विशिष्टता है । यह व्याख्या दण्डान्वयके आधार पर की गयी है। अतः जिज्ञासुओंकेलिये अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल एवं सुगम है। संक्षिप्त होते हुए भी यह व्याख्या श्लोकोंके अर्थके स्पष्टीकरणमें सरल एवं उदार है। यथावसर अलंकार, ध्वनि आदिका विवरण करनेके कारण इस व्याख्याका महत्त्व एवं उपादेयतामें वृद्धि हुई है । प्रभा टिप्पणीमें किस पदमें किस अर्थके आधारसे कौनसे कारक तथा विभक्ति हैं-इसका संक्षेपमें स्पष्टीकरण किया गया है, जो कारकविवरणकी भद्रङ्करोदयाव्याख्याके आधार पर है । जिसके द्वारा कारकके मूलसूत्रोंकोभी समझा जासकता है। व्याख्याकार : -भद्रङ्करोदया व्याख्याके कर्ता, प्रख्यात व्याख्याता कविरत्न पन्यासप्रवरश्री यशोभद्रविजयजी गणिवरके शिष्य पन्यासश्री शुभङ्करविजयजीगणि हैं। आप न्याय-व्याकरण-साहित्य तथा आगमिक विषयों के परिशीलनसे प्राप्त ज्ञानसे समाजमें लब्धप्रतिष्ठ हैं । उपरोक्त व्याख्याके द्वारा आपके व्याख्या करनेकी अपूर्व योग्यता एवं विलक्षण प्रतिभाका उदार एवं असन्दिग्ध परिचय प्राप्त होता है । ऐसा कहा जासकता है कि आपने इन व्याख्याओंके द्वारा अपनेको एक सफल व्याख्याताके रूपमें प्रस्तुत किया है । आप अन्य अनेक ग्रन्थोंका गुर्जरभाषानुवाद तथा संस्कृत व्याख्या करचुके हैं, तथा सम्प्रति भी ज्ञानके आराधन एवं वितरणमें सोत्साह दत्तचित्त होकर प्रवृत्त हैं । आशा है, आपके ज्ञान,
SR No.023434
Book TitleKarakmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhankarvijay, Suryodayvijay
PublisherLakshmichand Kunvarji Nagda
Publication Year1961
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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