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________________ अर्थ-तेम प्रत्येक जीव पण जुदा जुदा छे, अने ते कइ गतिथी आव्या अने कइ गतिये जशे ? तेम पुद्गल पण जुदा छे, तथा शरीरनो संग पण शून्य छे, ए रीते जे देखे छे; तेने देखतो जाणवो ॥ २१ ॥ जेम दोरडानुं ज्ञान थये सर्पनी भीति नाश पामे छे, तेम हुं अने स्त्री आदिक माहरी छे एवो ममत्व थाय छे, ते भ्रमहेतु छे. ते भ्रम ज्ञाननजरे जोवाथी नाश पामे ।। २२ ॥ किमेतदिति जिज्ञासा तत्त्वाभिज्ञानसंमुखी ॥ व्यासंगमेव नोत्थातुं दत्ते क ममतास्थितिः ॥२३॥ प्रियार्थिनः प्रियाप्राप्तिं विना कापि यथा रतिः ॥ न तया तत्त्वजिज्ञासोस्तत्वप्राप्तिं विना कचित् ॥२४॥ अर्थ–ए संसारनो संबंध शुं छे ? एम आत्मतत्त्वने सन्मुख ओलखवानी इच्छा थइ एटले ममता तरत नाश पामे. आत्मज्ञानी आगल ममता किहां रहे ? ॥ २३ ॥ जेम कामी पुरुष स्त्रीनो अर्थी थयो, ते स्त्री पाम्या विना कोइ पण ठेकाणे रति न पामे, तेम तत्वनो जाण पुरुष पण तत्त्व पाम्या विना क्यांये रति न पामे ।। २४ ॥ अत एव हि जिज्ञासां विष्कंभति ममत्वधीः ॥ विचित्राभिनयाक्रांतः संभ्रांत इव लक्ष्यते ॥२५॥ धृतो योगो न ममता हता न समताऽऽदृता ॥ न च जिज्ञासितं तत्त्वं गतं जन्म निरर्थकम् ॥२६॥ जिज्ञासा च विवेकश्च ममतानाशकावुभौ ॥ ___ अतस्ताभ्यां निगृह्णीयादेनामध्यात्मवैरिणीं ॥२७॥
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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