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________________ प्रशस्तिः येषां कैरवकुंदवृंदशशभृत्कर्पूरशुभ्रा गुणा॥ ___ मालिन्यं व्यपनीय चेतसि नृणां वैशद्यमातन्वते ॥ संतऽसंतु मयि प्रसन्नमनसस्ते केपि गौणीकृत-॥ स्वार्थोमुख्यपरोपकारविधयोऽत्युच्छंखलैःकिंखलैः॥१॥ अर्थः- चंद्रविकासी कमलना फूलनो समूह, चंद्रमा, कपूर, ए सरखा उज्ज्वला जेना गुण छे, तथा जे मनुष्यना चित्तने विषे मलिनता टालीने निर्मलता-उज्ज्वलताने विस्तारे छे एवा जे सज्जन पुरुषो ते, मारा उपर प्रसन्न मने सदैव रहेजो ! जेणे पोतानो अर्थ गौण कर्यो छे, अने जेनी मुख्यपणे परउपकारनी बुद्धि छे, एवा सज्जन जो मारा उपर प्रसन्न छे तो, उन्मत्त एवा खल जे दुर्जन लोक तेनी अप्रसन्नताए शुं थवानुं छे १ ॥१॥ 'ग्रंथार्थान् प्रगुणीकरोति सुकविर्यत्नेन तेषां प्रथा"मातन्वांत कृपाकटाक्षलहरीलावण्यतः सज्जनाः ॥ माकंदद्रुममंजरी वितनुते चित्रवा मधुश्रीस्ततः सौभाग्यं प्रथयंति पंचमचमत्कारेण पुंस्कोकिलाः॥२॥ अर्थ:-रुडा जे कवि छे, ते अर्थानुपत्तिए नवा ग्रंथ रचे; पण कृपानजरनी लेहरो तेनुं घर एवा जे सज्जन ते ग्रन्थने वखाणीने विस्तार करे छे. ते उपर दृष्टांत कहे छेजेम वसंतलक्ष्मी आंबानी मंजरीना मनोहरपणाने प्रगट करे छे, पण पोताना पंचम रागना चमत्कारे करी एटले रागनो टहुको तेणे करीने कोयल मंजरीनुं सौभाग्यपणं जगमा विस्तारे छे ॥२॥
SR No.023433
Book TitleAdhyatmasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay, Veervijay
PublisherAdhyatmagyan Prasarak Mandal
Publication Year1938
Total Pages254
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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